नागरिकशास्त्र शिक्षण | Nagrikshastra Shikshan

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प्रो हेतसिंह वघेला - Prof. Heatsingh Vaghela

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हरिशचन्द्र व्यास - Harishchandra Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 111 फा कवीना पयार कवा रान्य का জাত ঈমাতরর है/ हयात ~ सम्यस्ध गप्ाज को जरब देह है छोह दरसा में गयाज शार्य हो | समाज की प्रण प्रवध्या में परियार, कु या कड़ी के के खड़म्प को प्रचवित रीतिजरियातों के बतुसा प्राचरए करना पड़ता था, টি सर्पे ठ समापय दाग ननि तपनो प्रपतन দা । पमं वृद ड स्य मै উঠত का प्रतिख দন गया । पीदेधीरे वदृ डा एवान अ्रकृविद्यूजा ने से लिया तथा धर्म नम का प्राधार इत गया। राज्य को उत्पधि शूय किङ में क्षक्ति तयायुद्ध वा भी गोगदान रहा है। युद्धों से विजय के फेस्थेझेय লুলের ববীল। পিং কান গীত संगठनों में विस्तृत होते गये घोर रास्य में परिणत्र हों गय। बियेदा লালন ওথা নি হায় বল যব সাত ক সমাধ হয়া হারা ক) ধর ফা গবরাত নান त्विष जिसकी माता का पतन करता মানিক বান ধা বরা । বিহযাববাহী নীতি ক ক্যা राज्य विशास साआ्रर्यों মি ঘঠ্যায £া বইও राज्य की उत्वत्ति का घोधा गद्दायक तरव राजतिक चेजना है। गिलक्राइस्ट के १ सार 'राज्य के निर्माण के सभी तत्वों के मूल, जिनमें रक्त सम्बन्ध तथा धर्म भी सम्मिलित राजनैतिक चेतना सतते प्रमुख तत्य है । राजनेतिक चेतना मनुष्य को राज्य के प्रस्त संगटितं करती है । पद चेनना मनुष्य में जन्मजात है । प्ररह्यु ने उबर यू कहा था मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वो उसऊा प्रभिष्राय था कि यह एक राजनैविक प्राए है बयोकि उप्की दृष्टि में राज्य तथा समाऊ में कोई अम्तर नहीं घा। पश्चिम में राज्य का विवास युनास के संगर-राम्यों से क्रश, रोम साम्राउय सामन्तो रागय तथा ध्राधुनिक राष्ट्रीय राज्यों के विभिन्‍न सोषानों में धा) फास, হত অলী तथा इगर्लण्ड के राष्ट्रीय राज्यों में स्तेच्डावारी एपं तिरह्ुय राज्यों को जतते की जनतांभिक राजनैतिक बेतता के समक्ष कुक कर प्रतिनिधि পালন জী स्वापना करन पड़ी । प्रथम तथा द्वितीय विशक्र युद्धों की विभीधिका से अस्त होफ़र विश्र शार्ति एक् अम्तर्राष्ट्रीय सदमाव स्थापित करने के लिए प्रयत्व किये गये, जिन दे फ़वस्व रूप संयुक्त राप संघ की स्थापना भी यई | भव्र संकीणे राष्ट्रीय एकता से उार उउरूर पर्वर्राध्द्रीणत। एवं रट कौ नागरिकता से विश्व की नायरिकता की पोर मानव उन्सुख है । भारतीय घिचारधारा राज्य को उल्लत्ति के पूर्व उल्लिखित सर्वमान्‍्य ऐतिहाप्षिक वा विकास्वार्दी सिद्धान्त के भवुमार ही सर्वत्र यज्द के साथ नायरिकर्ता एवं सायरिकन्शाह्त्र की ठंड हरना का विकास না न्तु इख विकास फो गति देका की श्रक्ृतिं के प्मुरुष मिलन रही । पश्विम की भपेक्षा भारत में राज्य की उत्सत्ति एवं विकार प्रधिक प्रादीत एवं समृद्ध है । विश्व के प्राचीनतम “वेदों” को रचना भारत में हुई थो जिनसे तत्कालीन राग्यों का परिचय मित्रता है। वंसे तो वेंदिढ काल से पूर्व भारठ में विश्व की प्रादीवतसम सप्यतामों के छमझआालोन सिन्घु घाटी सभ्यता का पता हड़प्पा मोहन जोदड़ों, काली <या,.




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