अंतिम आवाज़ | Antim Awaj

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Antim Awaj by बल्लभ डोभाल - Ballabh Dobhal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीली स्षोल सी माषं / १७ सुम्मी ने एसा क्यो लिखा २ अच्छा होता, वह लिखती हो नही । ड्से पिछले पत्रा को याद आती है । विवाह बे! बाद लिखे गय उसके पत्रा से या जीवन मिलता था । तव उसके पत्र हमेशा घर वुलान के ख्याल से ही लिखे जाते रहे हैं । मुचे या कुछ पसाद है, इस बात को वह अच्छी तरह जानती है। मेरी पमादगी को अपनी भाषा में एम तरह पिरोती रही-- अब पेड-पोधा पर नए कल्‍ले फूटन का बाएं है। जब छोटी पहाडिय कै बीच वुरूश का जगल लाल फूलों से दहकन लगा है। पनघट के पास सफेद एूलौ वाले मालती जय मौर कूज वै झाड पर बेहद सफेदी छा रही है । आगन मे तुम्हारे हाथ का लगाया हुआ रजनीगधा रात भर महकता रहता है और जत म, हर सुबह शाम तुम्हारी प्रतीक्षा रहती है। तब उप्तक लिए ज्यादा दर कही टिक्‍ना मुश्किल हो जाता । নত ज तेस निकल ही पडता धा 1 अपने गाव के पास पहुचकर मन को परम सन्तो मिलता । वटे दिन था, जब पहाडियो पर तजी से वहने वाली नदिया को श्वेत जलराशि को वह अपलक दखता रहता । कूल- कछारो म उग जगली फलो स दका हुआ बुर्श का धना जगल आज भी मन में क्तिने ही रग एक साथ भर दता है । पर इस वार सुम्मी के पत्र म वसा कुछ नहीं है। बमात आया है, “उसन पड पौधा के काटन की खबर भर पहुचाई है। पडोस म॑ लहरें लेती नीली झील के सूख जाने की बात को है। विश्वास नहीं हांता, इतना सारा पानी कँसे सूख सकता है झील के कनार चारा और पक्तिबद्ध खडे ऊचे पड | प्रकृति ने अपना रूपक जैस स्वय बाधा हो । इनफौ छाव म आकर बहु अक्सर वंठ जाता था । नासपास पलं हुए हरे- भरे जगलो से उठती हुई ग्वाले की बसी की मधुर घ्वनि तमय होकर सुनता था। कभी कभी झोल के किनारे जमे हुए पत्थरों पर बैठ कर पानी पर अपनी प्रतिछाया को लहरा द्वारा दूर ले जाते हुए देखता था । वे पुरानी यादें भला कभी भुलाई जा सकती हैं । कई बार वह चोरी छिपे सुम्मी को अपने साथ लेकर उस झील के




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