प्राचीन भारतीय अभिलेख भाग - २ | Prachin Bharatiya Abhilekha Vol-ii

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prachin Bharatiya Abhilekha Vol-ii  by वासुदेव उपाध्याय - Vasudev Upadhyay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वासुदेव उपाध्याय - Vasudev Upadhyay

Add Infomation AboutVasudev Upadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ : प्राचीन भारतीय अभिलेख तीर्त्वा सप्तमुखानि येन समरे सिन्घोज्जिता वाह्‌ छोका ( मेहरोली लौह स्तम्भ लेख ) यहाँ सिन्धु की सहायक झेलम, चनाव, रावी, व्यास, सतलज, काबुल तथा स्वातको सम्मिल्ति कर सात मभुखो का विबर्ण प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार इन नदियों के नाम राजनीतिक परिस्थिति के कारण ही उल्लिखित हैं । गुप्त राजा बुधगप्त के एरण स्तग्म लेख मे लासन को दृष्टि म रखकर कालिन्दी ( यमुता ) तथा नर्वदा का वर्णन किया गया है जिसके मध्य में सुरश्मिचन्द्र शासत करता था । दक्षिण भारत के लेखों में युद्ध यात्रा के प्रसग में नदियों के नाम मिझते है । राष्ट्रकुट शासकने गमा-यमना कं मध्यमे धर्मपालको पगस्त किया ( मगा यमुना्मध्ये राज्ञों गौडस्य नद्यत, ) ऐसा उत्लेख सेंजन ताम्र-पत्र मे किया गया है । आक्रमण के मार्ग में कावेरी नदी का नाम चालुक्य नरेश द्वितीय पुलकेथिन्‌ के अयहोल लेख भ कषाग्रा । । किन्तु मप्य यग में धामिक कार्यो के साथ भी नदियों का नाम लेखों में आता है। गहदवाल नरेश गोविन्द चन्द्र देव के कमोौटी तामर-पत्र मे श्रोमद्‌ वाराणस्था गगाया स्नात्वा' बाक्य मिलता ह। तात्पर्य ये है कि दान करने से पूर्व गगा नदी में स्‍्ताव करना आवश्यक था। साराहा यह है ति নানা में विभिन्‍न परिस्थितियों के फारण प्रशस्तिकार ने पर्वतों तथा लदियों का उरलख किया हे । थाराक का जिस स्थान से सीधा सम्बन्ध होता था उसका उल्लेख भी लेखों मे स्वभावत पाया जाता हैं। कलिग विजय के पण्चाल अज्ञोक की मनोवृत्ति क। परिवर्सन हे गया, इसलिए उसने कलिगदेश के अतिरिक्त अन्य लेखों टारा विभिन्न अभिलेखों से पातों में धर्माज्ञा प्रसारित की “सर्वे मान से पजा मसा। अथा पजाये वणित नगर इच्छामि इक किति मनन हित सृषेन. ट्च्छामि इफ ।'' अतएव तोसली, उनज्जयिनो तथा तक्षयिला कृमार को सदया भजा गया। तोसलछी का वर्तमान घौली ( भुवनेश्बर के समीप, उडीसा ) से समीकरण किया जाता है । वह देखने मे यद्ध क्षेत्र के समान पकट त्ता घौरः म अशोक का पृथक्‌ शिलालख चट्टान पर खुदा हैं । उज्जयितता ( अवन्ति को राजघानों ) तथा तदक्षशिला (गन्धार प्रदेश का मुख्य तगर ) कं सवत्र कु कहने की आवश्यकता नही है । कुछ व्यक्ति बुद्ध वा जन्म स्थात कपिलवस्तु समझी हे क्याकि वह स्थान शाक्य व्य की राजबानी थी। लेकिन अशोक के रूम्मनदेर् ( नेपा तराई ) स्तम्भ लेख में स्पष्ट लिखा हँ--- हिद वधे जति राक्य मुनीति ৮ ४ ८ हिंद भगव जाते ति लम्बिनि गामे । अतएवं इसके आधार पर सभी सर्देह मिट जाता है । मौर्य सम्राट्‌ अशोक के आठवे शिलालेख में सिम्त वाक्य मिलता है--संबोधि तेनेसा धर्म-यात्रा । सम्भवत अशोक ने बुद्धधर्म से प्रवेश कर धर्मयात्रा नारम्ने की भौर पहले वह नद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी पहुँचा, तत्पश्चान्‌ ज्ञान प्राप्ति के स्थान बोप-गया । “सबोधि धर्मयाता” से बोध-गया के तीर्थयात्रा का अर्थ समझना चाहिए 1 अन्य स्थानों के सम्बन्ध में कोई सीधा प्रमाण नहीं मिलता । परन्तु सारताथ का स्तम्भ लेख




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now