मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार | Mukti Ka Amer Rahi Jambukumar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mukti Ka Amer Rahi Jambukumar by राजेंद्र मुनि - Rajendra Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजेंद्र मुनि - Rajendra Muni

Add Infomation AboutRajendra Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जन्म-पूवं परिवार एवं परिस्थितियां | ५ कोई स्थान नही रहा । यह्‌ जस्षमित्र था जो निमित्तज्ञ था! अपन इस मित्र से बहुत दिनो पश्चात्‌ भेट कर ऋपभदत्त को वडी प्रसन्नता हुई। धारिणीदेवी को भी हर्ष हुआ । अभिवादनों के आदान-प्रदात के पश्चात्‌ कुशल-क्षेम की ओऔपचारिकता हुई । हाँ, ओौपचारिकता ही थी, क्योकि धारिणीदैवी ओर ऋषभदत्त की मानसिक खिन्नता के तट को वह प्रसन्नता की लहरी क्षणिक स्पशं कर लौट गयी थी भौर इस खिच्तता से ज्षमित्र भी अविलम्ब ही परिचित हो गया था। धारिणीदेवी की इस गहन' उदासी ने जसमिन्न को उद्विन बना दिया । रथ-चक्रो की भाति कुछ क्षण सारा वातावरण गतिहीन रह्‌ गया--शन्द-शून्य ओौर भावहीन । अन्तत' मित्र ने मौन भग करते हुए ऋषभदत्त से प्रश्न किया कि श्रेष्ठि मित्र ! आज कौन सी विशेष बात हो गयी कि भाभी इतनी गम्भीर और उदास है। इनके मानस मे उठ रहे चिन्ता- ज्वार की स्पष्ट ज्ललक मुखमण्डल पर दिखाई दे रही है । आये सुधर्मास्वामी के दर्शनार्थ जाते समय तो एक अपूर्व कान्ति, उत्साह और हु की झलक होनी चाहिए । क्‍या वात है, मित्र | कारण ज्ञात हो जाने पर कवाचित्‌ मै किसी रूप मे सहायक हो सकू। इस प्रश्न पर भी कोई प्रतिक्रिया नही हुई । दोनो मौन ही बैठे रहे । जसमित्र ने श्रेप्ठि को पुन. सम्बोधित कर कहा कि आखिर बात क्या है ? ऋषमदत्त ने क्षीण सी मुस्कान के साथ छोटा सा उत्तर दे दिया कि मित्र | तुम स्वय ही अपनी भाभी से पूछ देखो तन! मेरी मध्यस्थता क्या आवश्यक ही है ” अब तो जसमित्र भी गम्भीर हो गया । वह धारिणी देवी की ओर उन्मुख हुआ 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now