और बात सुलगती रही | Aur Baat Sulagti Rahi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aur Baat Sulagti Rahi by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

Add Infomation AboutAmrita Pritam

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यात्रा ड्ट दी--ओर फिर जचभा सी तिलक वे मुह की ओर देखने लगी लोग दिन के उजाले में राह दूढते है पर पद्मा को जैसे ही सूरज चढता अपने हर तरफ अधेरा फन गया लगता । और अधेरे में सारी दुनिया की जावाजें उससे एसे टकरान लगती कि उसके हर सयाल के पैरो वो ठोकर लग जाती और वह घवराकर परो को मलते हुए फ्श पर बैठ जाती ता कितनी ही देर बठी रहती पर रात को जब दुनिया वी आवाजें वही डूब जाती उस खामोशी मे उसके मन की ली ऊची हा जाती और बह कोई राहू दूढन सगती और एक रात को सपन म उसे एक राह मिल गई 1 राह जसे साक्षात हो उसके पैरो के आगे आ गई जहा सामने किसी मादिर का वलस चमक रहा था. ओर उसन दखा मदिर के चरणों के पास वहती हुई एक सदी मे उसने हाथ पैर घोकर कुछ जगली पूल तोड़े है और फिर फूलों की पतले की क्निरी में डालकर वह मदिर की ओर चल पड़ी है. सबरे यह सपना जसे उसके मुह पर लिखा हुआ था । लाला न तिजोरी की चाबी उसके हाथ से ली तो पद्मा के हसत हुए मुह की ओर देसन लगा । पद्मा न सपना सुना दिया । पर जिस बात का ध्यान पद्मा को सही आया था लाला को आया बाला. यह तो मैं कहता ह देवी मे आप आकर मेरा चढावा मागा है। पिछले दिनो जब गोदामा वी तोड़ा फोडी हुई थी मैंने अपने मन में मानता मानी थी कि मेरा भरा गोदाम अगर पुलिस वाला के हाथ से बच जाए ता मैं देवी को प्रसाद चढाऊगा गोदाम भी बच गया मैंने माल भी ब्लैक वर दिया पर जभी मानता रहती है और लाला ने पद्मा से कहां कि वह जाकर देवी को प्रसाद घढा भाए--मुश्किलि स सी कोस का रास्ता है और गाडी सीधी जाती है । मैं अकेली पद्मा ने रास्ते की आर दंखा पर पंरा की ओर भी । वैरो के आगे अभी भी सस्कारों वी दहलीज थी. पर एक पैर उठाते हुए उसने कटा अगर साथ तिलक चला चले अयर वाली वात कठिन नहीं थी. लाला ने मान ली गौर फ्झा के कापते हुए से पैर याना पर चल दिए गाड़ी न॑ जबर शहर के प्लेटफाम क1 पीछे धक्का दे दिया तो सारे का




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now