सुदूर दक्षिण पूर्व | Sudoor Dakshin Purva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জীপ অন १९६९७३८ भं में पूर्व और दक्षिण आफ़िका से छौटा था और उस यात्रा पर सने ˆ हमार प्रधान उपनिवेक्च ' नाम एक पुस्तक लिखी थी उस धमय भने उस पुस्तक में लिखा श~ “किसी भी केश का पुरा शाव सप्ाचाए-पन्नों ঘা वहाँ से संबर्ध रखने घाली पुस्तकों के वराध्ययन' से महीं हो सकता, इसका अनुभव मुझे आफरिका-मात्रा से हो ধা पक्षिण पूर्व में व्यूजीलेंड, आत्टेलिया, सिमापुर और फीजी जाकर सेरा उपपषत विचार ओर अधिक बढ़ हो गया। भारत इतना पड़ा देश है, हमारी समस्याएं इतनी जटिल और महान है, हमारे पेश मे अन्य दशो की यात्रा की इतनी कम प्रथा है मौर गरीबी कै कारण सना फे तते कम साधन द कि हुम दस संसार के भिन्‍्म-भिन्‍्त भागों में कया है इसे बहुत कभ आनले हैं । जो संपतत है और जो विषे को जाते भी ह उनफौ ये यात्रां यौरोप तथा भेरिका एक हु परिभित रहती ह । अवः अधिक से अधिकं मौरोप भौर अमेरिका फौ छोड पंसारक्षे अन्य भागोंसि हुयारा कोई संपर्क नहीं है और यवि है भी तो नहीं के बरावर । भूगोल में जिनकी अनुराग है ये संसार के भिम्त-भित्त भागें और विभागों को तवशे पर अवद्य पहुलचान लेते हैं। इतिहास और संस्कृति से जिरहे प्रेम है वे ऐतिहासिक और सॉस्कृतिक ঘুঁতি ই जिम स्थानों का महत्व है घहां का ज्ञान रखते हू । परस्तु किसी भी जगहु कौ संध्ची जानकारी जो वहां जाने से हो सकती है वह इस प्रकार को पहुचान और ज्ञान से शथे भिन्ने है) ধান १९२३ में केवल २७ यं फी अवस्था मेँ में स्वर्गीय परित मोतीलाल जी नेह के नेतृत्व भे सर्वपरभस के्रीय धारा छमा का सदस्य हुमा । तब से भब तक इत २८ वर्षो में में केश्रीय असेम्बली, कौसिल आफ स्टेट, विधान परिषद और पारभेंट किसी न किम्नी का सकस्य रहा। हां, उस वर्षों को छोड़वार जब कांग्रेस बाले जेल में रहे। इस काल में मेरा स्थान भी जेल ही था। घारा सभा के अपने इस लग्बे अवधि-काछ में में वेदेशिक विभाग, विशेषकर उस स्थानों से जहां भारतीय बसे हैं, सेवा विऊूचस्पी रखता रहा। केखीय




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