मुनि सभाचन्द एवं उनका पद्मपुराण | Muni Sabhachandra And Unka Paddhampuran

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Muni Sabhachandra And Unka Paddhampuran  by कस्तूरचंद कासलीबल - Kastoorchand Kasliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হত शुनि सभाचंद एजं उसका पर्मपुरार्त 3 तथ्य संग्रहीत हैं ।उन्हीं के प्राधार पर एवं गुरू परम्परा से आप्त कथानकों के झाषार प्र जेन पुराणों की रचना की गई है। सबी शताब्दि में शीलंकाचार्य ने चसमन्न महापुर्सि चरिय लिखा जिसमें राम लक्खश्ा चरिय सी दिया हुझा है। यह कथा विषलसूरि के पठमवरिय से प्रभावित है इसी तरह भद्र श्वरकृत कहाबली के प्रम्तगंत रामायणम एवं मुवनवुग सूरि कृत सीया चरिय तथा राम लवखरा चरिय कथायें प्राप्त होती हैं । संस्कृत भाषा में झाचाये रविषेश का पश्चततरितम्‌ (पदुसपुराण ) रामकथा से सम्बन्धित प्राचीनतम स्वना दहै जि रचना वीरनिर्वाण संबत्‌ १२०४ तथा विक्रम संवत्‌ ७३४ में की गई थी। यह पुराण १२३ पर्वो में विभक्त है तथा१८००० श्लोक प्रमाण की बड़ी भारी कृति है। रामकथा का ऐसा सुन्दरतम वर्णन सस्कृत भाषा में प्रथम बार किया गया है। १२ वीं शताब्दि मे प्राचां हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में रामकथा का अच्छा वर्णन किया है। १५ वी ज.ताब्दि में बह) जिनदास ने पद्मपुराणा की रचना करने का ग्रौरव प्राप्त किया । यह पुराण ८३ सर्गों में विभक्त है तथा १५००० इलोक प्रमाण हैं। पुराण की भाषा सरल एवं श्राकरषक है। १६ वीं शताब्दि में भट्टारक सोमसेन ने वेराट नमर (राजस्थान) में रामपुराण की रचना समाप्त की थी तथा १७ वीं शताब्दि भट्टारक धर्मकीति ने पद्मपुराण की 16124 7. में रचना करके रामकथा को प्रौर मी लोकप्रियता प्रदान की। मुनि अन्‍न्द्रकीति द्वारा रचित पद्मपुराण की रचना प्रामेर शास्त्र भण्डारमेसंग्रहीतदहै\ प्रपन्नश भाषा में महाकवि स्वयम्भू मे पउमवरिड की रचना करने का यश्षस्वी कायं किया । पउमचरिच एक विशाल महाकाच्य है जो पांच काण्डों--विद्याधर काण्ड, भ्रथोष्या काण्ड, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड एवे उत्तर काण्ड में विभक्त है| पाच काण्ड एवं ६ऽसंधियो मे काव्य बद्ध है । स्वयस्मू ८ वीं € वी शताब्दि के महान्‌ कवि थे जिते महा पण्डित राहुल सरक्त्यायन ने हिन्दी का प्रथम कवि स्वीकार किया है। १५वीं शताब्दि में महाकबि रइध, हुए जिन्होंने अ्रपम्र॒श में विशाल काव्यी एवं पुराणों की रचना की । इन्होंने बलभद्रपुराणा (पदमपुराण) की रचना करने वा गौरव प्राप्त किया था ।* लेकिन जब हिन्दी का युग प्रारम्भ हुश्रा तो जैन कवि इस भाषा में भी रामकथा को काव्य रूप में निबद्ध करने में सबसे श्रागे रहे । सर्वप्रथम १. प्रशस्ति संग्रह--संपादक ड1० कस्तूरचन्द कासलीवाल पृष्ठ संख्या ३० २. बहीं पृष्ठ संख्या १६६




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