निशिकान्त | Nishikant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
325
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निशिकान्त ६
जानताहै; तू ही जानता ` |
वह सजन मानो शून्य मे अविभूत होने लगे, क्लेकिन दृसरे ही हण
सहसा जागकर उन्होने कहा, “बच्चो ! जब उखक याद श्राती दहै तो हृदय
में टीस उठने लगती हे ; लेकिन” ' लेकिन मेरे बच्चो ! क्या किया जाय'' ?
मैं इन लोगो को अपने पास ले आया हैँ । बेचारे परदेशी हैं। घर तार
दिया है । किसी के श्राने तक यहीं ठहरेगे 1
वे बातें कर रहे थे। परन्तु माँजी का आतेनाद डसी तरह उठ रहा था |
वह कभी चीत्कार कर उठतीं, कभी सिसकने लगतीं । कभी-कभी उनका
स्वर इतना गिरता कि पिल्ले की चीं-चीं से श्रधिक तेज आवाज पेदा नहीं कर
पाता था । उस समय जगता था कि यह शब्द् अरब बन्द हुआ, अब बन्द हुआ ।
लेकिन दूसरा कषण श्राता, “'हाय मेरे बेटे, मेरे लाल, मेरे मोहनः की करुण
पुकार हृदय मे पंच की तरह टीकनं लगती, जो सीधी नही, अपितु चारो तर
एक गहरी कुरेदना ॐ साथ रएंठ-पर-एढ देती हुईं प्रवेश करती है ।
दूसरी ओर रात श्रविराम गति से आगे बढ़ रही थी । समदर्शी चन्द्रम
की मधुर चाँदनी आंगन में उतर आईं थी ओर डस श्रालोक में तारों की
छवि सन्द पढ़ गई थी , पर नील गगन मुखरित हो उठा था। वह सजन बोल '
उठे, “दस बजने वाले हैं शोर बच्चो ! तुम्हें दूर जाना है । तुम लोग बड़े
अच्छे हो | इतना कष्ट किया 1?
उठते-उठते कुमार ने कद्दा, “जी कष्ट क्या है १”,
“बेशक बच्चो, कष्ट कुछ नहीं है। प्यार के दो शब्द सुर्दा शरीर में:
जीवन फू क देते हैं। परन्तु आज यही दो शब्द महँगे हो गये हैं।”
“जीहाँ, आप ठीक कहते हैं।”? कान्त बोला और वे ल्ोट चले । देहरी
'पर आकर कान्ति सहसरा ठिठका और मझुड़कर उसने दद स्वर मे कदा, “माजी !
में कल फिर आऊँगा।??
ओर फिर वे झ्न्धकार में श्रदश्य हो गए | क्षण-भर बाद वें सड़क पर
थे और उनके पीछे किवाड़ बन्द हो चुके थे । धही सन्नाटा, वही मरघट कीः
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