धूप का टुकड़ा | Dhoop Ka Tukara

Dhoop Ka Tukara by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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याद आज सुरज ने कुछ धबरा कर रौशनी की एक खिड़की खोली बादल की एक खिडवी घद की और मेंघेरे की सीढियाँ उतर गया आसमान की भवो पर जाने बयां पसीना आं गया सितारों वे बट उसने चाँद का कुर्न उतार दिया मैं दिल वे एक वोने म बठी हूं तुम्हारी याद इस तरह आयी जसे गोली लवडी में मे गाढा बडवा धुआ उठे साथ हुजारा सपाल भाय जैसे सूखी लक्डी सुख आग की आह भरे दोनो लक्डियाँ अभी बुसायी हैं वंष कोयलों की तरह बिखरे हुए कुछ बुझ गये वुछ बुझने से रह गये वक्‍त का हाथ जब समेतने लगा पोरा पर छाले पड गये तेरे इश्क वे हाथ से छूट गयी और फिदगी दी हुंडिया टूट गयी इतिहास का मेहमान चौके से भूखा उठ गया घूप वा दुवडा / 17




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