सदयवत्स वीर प्रबंध | Sadayavatsa Veer Prabandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~, बढाने में अनिच्छा व्यक्त की। छापंखानेवालों. .. ने यह सिरपच्ची ली; वाला ` साहित्य विद्यासभा की ओर वापस भेज दिया | और.विद्यासभा, ने मुझे: ~ वायस लौटा दिया । और. इस तरह यह भकारतका कार्य यकायक रुक गयां। .... श्री नाहटांजीकी प्रेरण[- श्री अगरचन्द नाहटाजी महोदयते : ` ह । उनके “राजस्थान भारती नासके मासिक-पत्रिका के अंक में सन १६४८ | । में प्रकाशित एक विस्तृत लेख में उस प्रबन्ध क्रा प्रकाशन होने. वाला है ` ऐसा नोंठ के रूप में उल्टेव किया था । बाद मे (वि. स.२०१६). ई. स | ` . १९६० के सितम्बर मास में श्री नाहटाज़ी महोदयने,. प्रस्तुत प्रबन्धकों श्री... . सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्य ट बीकानेर ग्रंथमालामें प्रकट करनेकी ._ संस्था-के सेक्रेटरी (मंत्री) के नाते, मुझ भूवन किया, . प्राना की: मैने ;; ` त धन्यवादके साथ उनकी प्राथनाको सहष स्वीकार किया । इस त्रहं प्रस्तुतः प्रवधके.प्रकाशन-कायै.की कहानी या बुव इतिहास, अब पूर्ण होता है । - ४» आभार दहान- इस उपयोगी साहित्य रचनाकृति. को प्रकाझमें - « छाने की सुविधा एवं सहायता देने के लिये, तथा तत्सेंबधी .अनेक हस्त- लिखितं प्रतियां एव अन्य सामग्री भेजकर रचनाक्ृतिके स पादन, सं शोधन एवं प्रकाशन आदि कार्यों में जो सहायता प्रदान की है इसके लिये में . श्री नाहटाजी महोदय को धन्यवाद के साथ उनका हृदय से आभार + व्यक्त करता हूं । . . उस संपादन की प्रस्तावना लिखने. में उपरिनिर्दिष्ट श्री नाहटा जी ' महोदय का “राजस्थान भारती” में प्रकाशित-“सदयवत्स सावलिगां की _ ब्रेमकथा” नामके बत्यन्त अम्यासपूर्ण एवं विद्वत्तापूर्ण . लेख का काफी .. उपयोग - भी. किया है । उसके लिये भी मुझे उनका ऋण-स्वीकार करते : हये -मत्यन्त हषं होता हैं... 5 সবুর যখন मेनि संशोधित की हुई एवं अन्य सर्व गुजराती सामग्री “का: हिंदी में अनुवाद करने वे मेरे स्नेही एवं साहित्यक~शिष्य ; ` श्री: चन्द्रकान्त बापालाङ - पटे (साहित्यरत्न-प्रयाभ) जी को मैं ... चन्यवाद देता हूं 1 ५१ = द्ध এ




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