सारंग | Sarang
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बरस चुकी अब क्या बरसेगी ?
सूक बनी সবি तरसेगी !
सूचित कर आगम बेला भी नही अवेगे--
मधुर उलहने अश्रुपात सुन रुक जावेगे ।
कठिन तियति मन से हर्षेगी
आँखें प्रतिपल ही तरसेगी !
व्यर्थ जायगा मान अनिरचय की घड़ियों में--
मूछित होगे प्राण प्रतीक्षा की कड़ियों में ,
दुःख की हरियाली सरसेगी
मूक बनी प्रतिपल तरसेगी !
अस्त व्यस्त श्रृंगार मिलन के साज सलौने
स्वप्त-रहित निद्रा में निशि के राज अलौने
कल्पित चरणों को परसेगी ,
मूक बनी प्रतिपल तरसेंगी '
সরস গুনে वदप. ५०१४-५० १ ४ ११
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