उनमन | Unman

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Unman by दिनेश नन्दिनी - Dinesh Nandini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ प + ल. १२ कोविद्‌ कृष्ण, श्री राधा चित्त -विंहारिणी, महानन्दा तथा युवन मोहिनी वंशियों के रव वन्द करदे । तेरी सरला मुरली भी न बजा मदन हकत, 'बधुर' और पड़श्र वेणुओं को भी मुख से न लगा । मूकितापिका काकली कोमी विश्राम दे जिसको श्रवण कर कोकिला भी मूक हो जाती है ! कवीदवर, आज श्रि वीणा के तार छेड़ और क्रांति के अनल-शिखाओं से लिपटे राक्तिम गीत उचार, जिन्हें सुन कर धूजटी की अखणड समाधि भज् हो जाय नर-राज प्रलय का डमरू बजायें और त्रिकालाङ्गनि रुद्र के तृतीय नेत्र से वह प्रलयकारी महानाश की उ्वाला प्रज्वलित हो जिसकी धांय धाय करती लपे मे हिसा, शोषण, और श्राततादयो कै अत्याचार जिसने मानव को त्रस्त कर दिया है, संसार को जीवित स्मशान बना दिया है, जहँ कोरि चितायये सुलगती रहै, कंकाल मस्म होते है धकधक जल जायेँ !! 'और उस भस्म म फिर से मानवता का पूं पुष्प खिल उठे। |




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