राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा [हिन्दी अंग्रेज निबंध] | Rajasthan Nyayik Seva Pariksha [Hindi Angrej Nibandh]

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Book Image : राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा [हिन्दी अंग्रेज निबंध] - Rajasthan Nyayik Seva Pariksha [Hindi Angrej Nibandh]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 / राजहंत सविधान में कार्य की मानवोचित दशाओों, मातृत्व-कल्याण, उद्योगों मे श्रमिकों के शोपरण पर रोक, निःशुल्क श्रनिवायं लिक्षा की व्यवस्था करके समाज में व्याप्त प्रममानताग्रों को दूर बरने का सफल प्रयास्त किया गया हे | सभान कार्य के लिये समान वेतन, मौतिक साधनों के स्वामित्व का इस प्रकार वितरण कि वह सबके लिए हितकारी हो, सम्पत्ति और उत्पादन के साधनों वो इस प्रकार संग्रहित न होने देना जिससे गाव साधारण के हित को हानि पहुँचती हो, ये सब श्राथिक न्याय के एक नये युग के प्रवर्तक है । 9. मूल प्रधिकार : भारतीय संविधान के भाग 3 में नागरिकों के मूल प्रयिकारोक स्पष्ट घोषणा की गई है जो भारतीय संविधान की एक अद्वितीय विशेषता है । सविधान द्वारा नागरिकों को 6 महत्वपुर्ण भ्रधिकार समता व समानता का प्रधिकार, स्व- तन्प्रता का ग्रधिकार, शोपणा के विरुद्ध भ्रधिकार, धामिक स्वतन्त्रता का ग्रधिकार, বাঁক্িনিক एव रिक्षा रसेम्बन्धौ श्रधिकार एवं साविधानिक उपचारो का श्रधिकार, प्रादि प्रदान किये गये है जो व्यक्ति के नैतिक सामाजिक एवं बौद्धिक विकास के निए नितान्त ग्रावश्यक है। संविधान के 44वें संशोधन प्रधितियम, 1978 द्वारा सम्पत्ति के प्रधिकार को मूलभूत भ्रधिकारो के अ्रध्याय से निकाल दिया गया है । सम्पत्ति के भ्रधिकार को सविधान के श्रनुच्छेद 300 क में समाविष्ट कर हुसे एक सामान्य विधि के प्रधिकार के रुप में मान्यता प्रदान की गई है । संविधान के निर्माताभो ने इन ब्रधिकारों का उदारतापूर्वक गहन श्रब्ययन एवं चिन्तन किया है, उनकी दूरदरशिता का ही यह प्रतिफल है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं सामा- जिक नियन्धण के वीच सामन्जस्यता स्थापित करने का सफल प्रयास किया गया है। इसो उद्दं श्य से भावश्यकता पडने पर इन प्रधिकारों पर लोकहित में मुवितयुवत प्रतिवनं लगाये जा सकते हैं । लि मूल प्रधिकार राज्य की निरंकुघता पर समुचित नियन्त्रण प्रस्तुत करते हैं । ये प्रधिकार राज्य वी कार्यपालिका एवं विधायिनी शज्ति पर एक मात्र प्रतिबन्ध है । प्रनुच्छेद 13 राज्य को ऐसे कानूनों की संरचना के विरुद्ध मिदश देता है जो मूल अ्धिवारों का उल्तधघन अथवा झ्तितन्रमण करते हैं। यदि राज्य ऐसी विधि की संरचना करतप्ह तो वे मूलतः शून्य माने जावेंगे श्रौर न्‍्यायालयो द्वारा उन्हें असर्द पाविक घोषित किया जा यक्रेया मूल भधिकार कैवल मात्र भौपचारिक धोषणा मात्र न बने रहें, एस उरूश्य से सविधान में उनकी सुरक्षा एवं सरक्षण के लिए सांविधानिक उपचारों का प्राव- धान दिया गया है । उच्चतम स्यायातय तथा उच्च स्यायालयों को इस उद्देश्य हेतु बम्दी प्रत्यक्षीवरणख, उसप्रेपणण, प्रतिशोध, परमादेश व भपषित्वार पृच्छा पभादिसेस प्यः वासने दतु पयिटृतद्कियागयादटै । श. प्रम्येदकरने संविधान को प्रात्मा রকি 5




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