आचार्य रामचंद्र शुक्ल | Acharya Ramchandra Shukla
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपक्रम , &
या परोक्ष॑ रूप से ये उनसे प्रभावित भी.हुए। इसी लेंख, में इन्होंने आगे चल-
कर.लिखा है--“मिरजपुर आने पंर कुलं दिनों. सुनार पड़ने लगा कि
भारतेंदु दरिश्चंद्र के एक मित्र यहाँ रहते हैं, जो हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि हैं ओर
जिनका नाम है उपाध्याय बद्रीनारायण चोधरी। भारतेंदु-मंडल की किसी सजीय
स्मृति के प्रति मेरी किंतनी उत्कंठा रही होंगी, यह अनुमान करने की बात ই 1১
कहने की आवश्यकता नहीं कि यह सजीव स्मृति? प्रेमघन जी ही थे। अपनी
बाल-मिन्र-मडली के साथ ये 'प्रेमघन! की पहली भॉकी! भी ले आए थे | इस
प्रकार इम देखते हैं कि शक्ल जी का ,बाल्य-काल साहित्यिक विभूतियों के
श्रवण, स्मरण तथा..दशन से प्रभावित हुआ ।
किशोरावस्था में पं० केदारनाथ पाठक ' से परिचंय होना भी शुक्ल जी के
साहित्यिक जीवन में विशेष महत्त्व रखता है | इनके साहित्यिक जीवन की
अग्रसर ओर प्रोढ़ करने में अंवश्य ही उन्होंने सहोरे 'कां काम किया | इन्हें
नागरीप्रचारिणी समा में' लासे में भी उन्हीं का प्रधान हाथ था | पं० केदारनाथ
पाठक ने मिर्जापुर में 'मेयोमेमोरियल लाइब्रेरी! खोली थी; जहाँ नित्य सायकाल
श्री कांशीप्रसाद जायसवांल, श्री प्रयागदास और शुक्ल जी पढ़नें जाया करते
थे। यह तंब की बात है जब शुक्ल जी नरवी कक्ता में पंढुते थे । इस लाइब्रेरी की
शुक्ल जी ने जितनी पुस्तकें पढ़ी, उन सबपर इमेके नोट लिखें हुए हैं | ये
बाल्य-काल से ही अध्ययनशील थे और नवींनं नवीन विषयों का अध्ययन
करते थे | इनके छोटे माई श्री हरिश्चंद्र शुङ्ग का'कथन है किं जत्र ये दसवीं
कच्ता में थे तब मेंने इन्हें हबंट स्पेंसर की 'साइकोलाजी' नामक पुस्तक पढ़ते
देखा था । शुक्ल जी को यहाँ से शँगरेजी और हिंदी. दोनों भाषाओं की पुस्तकें
पढ़ने को मिलती थीं। शुक्ल जी के लिए हिंदी-पुस्तके एकत्र करने में पाठक जी
को विशेष प्रबंध, करना पड़ता था; क््योंकि.-वे चाहते ,.थे किये हिंदी की
पुस्तकों का अवलोकन करें | हिंदी की ओर शुक्ल ,जी की प्रवृत्ति तो थी ही ।
इस प्रकार १० .केदारनाथ पांठक शुक्ल जी में अध्ययन की प्रदृक्ति जगने शरोर
इनको सान्-बद्धि करने मे सहायक हुए । वे शुक्ल जी के घर पर इन्दं पुस्तकें
पढ़ने; को .दे' श्राया करते ये । घर पर पाठक,जी को देख शुक्ल जी के पिता
कहते--“लें आया: हिंदी”, “आ गंयां कमबख्त |” शुक्ल जी में अध्येयन का
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