सर्वोदय की बुनियाद शांति स्थापना | Sarvodaya Ki Buniyaad Shanti Sthapana

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Book Image : सर्वोदय की बुनियाद शांति स्थापना  - Sarvodaya Ki Buniyaad Shanti Sthapana

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शाति का संस्कार--१ १५ क्लास-टीचर या बोडिग का सुपरिटेडेट शिकायत सुनकर पहले उन्हे उलहना दे कि भरे तुम एक स्कूल के विद्यार्थी, एक छात्रालय के छात्र, भाई-बहन की तरह रहनेवाले, आपस मे लडते हो ? यह तो श्रच्छा नही है। अच्छा जाग्र, अब आपस मे मिलकर समझौता करलो और देखो, एक-दूसरे की गलती या कुसूर न दिखाकर अपनी-अपनी गलती या कुसूर को देखने की कोशिग करो । २४ घटे की मोहलत हम तुमको देते है । आपस में समझौता करके झा जाओ्ो । श्रव इससे कई फायदे हुए---पहला तो यह कि क्लास-टीचर का पढाई का वक्‍त बच गया, उसको जिम्मेदारी का बोझा भी कम हुआ, दूसरे वच्चों के मन पर सस्कार पडा आपस में न लडने का, खुद अ्रपनी गलती देखने का, फिर आपस में समझौता कर लेने का । भ्र्थात पहले मे उनका भ्रात्‌- भाव बढा, दूसरे में आत्मनिरीक्षण की प्रवृत्ति, तीसरे में समझौता और सहयोग-वृत्ति की पुष्टि हुई । शाति-पालन और शात-जीवन की यह बुनि- यादी बात आपने विद्याथियो को सिखाई । अब यदि विद्यार्थी समझौता करके आ गए, तो आपका इस तात्कालिक झगडे का ही नही, भावी शाति-स्थापना का काम भी सरल हो गया वे दुवारा या तो श्रापस मे झगडेगे नही, यदि झगडे, तो परस्पर आत्मनिरीक्षण के द्वारा विवाद को बढायेंगे नहीं, बढा तो आपस के समझौते से उसे निपटा लेगे 1 मगर प्रव मान लीजिये कि समझौता नही हुआ, तो फिर क्लास-टीचर उस झगडे को उनके न्यायालय में भेजे, जो उनकी अपनी और अपनी बनाई हुई है । न्यायालय में न्यायाधीश मामले को लेकर पहले उन्हें उलाहना दे कि अच्छा तुम लोग आपस में झगडे भी और फैसला भी नही कर पाये ? यह तो अ्रच्छी बात नही है । अच्छा हम' फिर तुमको २४ घटे का समय देते है। कलतक समझौता करके आ जाओ--नही तो फिर कल तुम्हारा मामला पेश होगा । इससे उन्हें एक वार फिर झगडा न करने तथा समझौता करने की प्रेरणा मिली । इस दुवारा की प्रेरणा से उनके मन पर शाति, सहयोग, सदभावना




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