महाकवि भास | Mahakavi Bhas

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Mahakavi Bhas by डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आस्ताविक महाकवि भास ने जनसाधारण के मनोभावों, हृदय की वैत्तियों एवं “विभिन्न परिस्थितियों में उत्पल्त होने वाले मानसिक विकारों का चित्रण बड़ी कुशलता से सम्पन्त किया है। राग-द्वेष, हर्ष-विषाद, प्रेम-करुणा, उत्साह- -अवसाद प्रमृति जितने भाव मानव हृदय कौ सम्पत्ति ह, उनका सरस ओर मधुमय वातावरण में निरूपण किया गयां है । भारतीय संस्कृति के जमर संदेण- वाहक नाटककार भास ने जीवन की उन शाश्वतिक समस्याओं-घमे-काम, धर्म -अर्थ, प्रणय-कत्तेव्य, स्वार्थ-परमार्थ आदि का उद्घाटन किया है; जिनका मानव जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि मानव जीवन के विवेचक्त और विश्लेषक नाठककार भाक्त भारतीय जीवन और संस्कृति के प्रमुख गायक हैं। निश्चयतः भास की चाट्य-कला में “विविधता और वहुमुखता विशेष रूप से समवेत हैँ। प्रकृति के नाना रूपों के :जागल्क द्रष्टा भास कौ नाट्य-कला एक ऐसा दर्पण है, जिसमें प्रकृति और जीवन दोनों ही प्रतिविम्वित हैं। यह दर्पण सामान्य दर्पण नहीं है, अपितु वर्णे- मय रश्िमियों को संसृत भौर प्रकाशित करने वाला है । भास के नाटक जीवन कौ सांकेतिक अनुकृति न होकर जीवन की सजीव সবিলিপি' হীন के साथ वास्तविक प्रतिच्छवि भी हैं । यही नहीं, वे यथार्थतः -आन्तरिक जीवन का एेसा 'ऐलवम' हैं, जिसमें कला और जीवन के विविध चित्र संकलित हैं। जीवन की चित्रमयता नाना प्रकार के वेष-विन्यासों एवं भआव-भंग्रिमाओं द्वारा अभिव्यक्त हुई है । यही-कारण है कि भासकी कृतियो में आवनामों, बतीतकालीन गौरव गाथाओं, इतिहास-पुराणों, सफलता-विफलताओं' उत्यान-पतनों, शुचिता-अशुचित्ताओं भादि की जीवन्त अवतारणा प्राप्य है। , निस्प्देह जीवन के समान. ही भास के नाढकों का क्षेत्र एवं परिधि अत्यन्त विस्तृत और विशाल है। मानवता, मानव मूल्यों, मनुष्य के चिरन्तन- भावों, अनुभूतियों एवं समस्याओं पर गम्भीरतापूर्वक चिन्तन किया गया है 1 सभ्यता,




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