दिमाग ही दुश्मन है | Dimag Hi Dushman Hai

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Dimag Hi Dushman Hai by यू.जी. कृष्णामूर्ति - U.G. Krishnamurti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यू.जी. और हम यू जी. मैं कभी भी सठाधीश बनकर बात नहीं कर सकता | यह बहुत बनावटी है। मठाधीश की तरह गद्दी पर बैठना और चीजों के बारे में काल्पनिक या अदृश्य ढंग से बात करना अपना समय नष्ट करना है। एक क्रोधी व्यक्ति कभी भी न तो बैठता है और न ही बात करके अपने क्रोध को सुख में बदसता है। इसलिए तुम मुझसे यह मत्त कहो कि तुम संकट में हो तुम क्रोध में हो । क्रोध की बात क्यो करे ? तुम एक आशा में जीते हो और मरते हो । तुम आशाओं के बोझ से दबे हुए हो और यदि तुम्हें यह जीवन निराशापूर्ण लगता है तो तुम अगले जीवन की खोज करो। जीवन स्वर्य नहीं आएगा। # यह सच है कि निशिचत रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि आपकी बातें किसी को भी आशा देंगी। यदि आप किसी को दिलासा नहीं दे सकते या उसे रास्ता नहीं दिखा सकते तो फ़िर आप बोलते ही क्यों हैं ? 3 मैं यहाँ बोल रहा हूँ। तुम आते हो तो मैं बात करता हूँ । क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी आलोचना करूँ तुम पर पत्थर फेंक ? यह सब बेकार है । यह सब तुम्हारे लिए दुर्भाग्यजनक होगा । चूँकि तुसने अपने चारों ओर एक अभेद्य दुर्ग स्व रखा है इसलिए तुम कुछ भी महसूस नहीं करते । तुम अपनी स्थिति को समझ पाने में असमर्थ हो। तुम अपने चिंतन के आधार पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हो जो तुम्हारी अपनी ही सोच और मनोभाव हैं। प्रतिक्रिया ही विचार है| जो दर्द तुम्हें वहाँ हो रहा है वह बिना अनुभव के हो रहा है । यहाँ तो कोई अनुभव है ही नहीं । बस यहीं सब कुछ है । इस स्वाभाविक स्थति में तुम दूससें का दर्द महसूस करते हो भले ही तुम उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हो या नहीं । हाल ही में मेरा बड़ा लड़का नजदीक के ही एक अस्पताल में कैंसर से मर यू.जी. और हम / 17




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