साहित्य का स्वरुप | Sahitya Ka Swaroop

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahitya Ka Swaroop by ब्रजलाल गोस्वामी - Brajlal Goswami

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रजलाल गोस्वामी - Brajlal Goswami

Add Infomation AboutBrajlal Goswami

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
है। एक विशिष्ट प्रकार की अनुभूति श्रथवा भावना की जीवन व्यापिनी तीन्रता कबीर, तुलसी मीरा श्रादिको जन्म देती है जिन के काव्य में एक ही विषय की ग्रभिव्यक्ति है, एक परा कान्ति का ही विलास है। यही अनुभूति अथवा भावना उन की चेतना का निर्माण करने वाली है। जहां यह भावना-शक्ति लौकिक पदार्थों की विविधता में रमण करती हुई एक के बाद दूसरे के साथ तादात्म्य प्राप्त करती है वहां हम लौकिक काव्य की रंगीनी, बहुविधता, भ्रनेक- रूपता को पाते हैं । कोई भी पदार्थ-स्थूल अथवा सूक्ष्म-हमारी चेतना को अ्रधिकृत कर सकता है । बाह्य ग्राकाश की धूली हुई नीलिमा हो अथवा परिपृत मन का उज्ज्वल प्रसाद, देख व्यापो विप्लव हो ग्रथवा किसी क्रान्तदर्शी की ऋतंभरा प्रज्ञा, मन के आगे क्षण भर के लिए घूमजाने वाली कोई कल्पना हो अ्रथवा नेत्रों के सामने अपती स्थूल और दयनीय वास्तविकता में विद्यमान भिखारी का नमन शरीर, किसी व्यक्ति की करुण गाथा हो अथवा किसो समाज के उत्थाव पतन का आख्यान-- सभी अनुभूति के विषय बन सकते हैं । अनुभूति का ग्र्थ हैं इनके प्रति दिए गए ध्यान का सातत्य ओर वेग । परन्तु इतने से ही साहित्यकार की चेतना का स्वरूप स्पष्ट नहीं होता | ऊपर दिए गए पदार्थ और व्यापार साहित्यकार को चेतना के विषय भी बन सकते हैं और साधारण मनुष्य की चेतना के भी । इन्द्रिय-सन्निकषं से उत्पन्न ज्ञान दोनों दशाओं में एक जैसा है। राग श्रादि का संवेग, वृत्तियों का क्षोभ, मनोविकारों का उत्थान, साहित्यकार के मन में और साधारण व्यक्ति के हृदय में समान रूप से देखा जा सकता है। प्रइन स्वाभाविक है--फिर साहित्यकार की चेतना को विशिष्टता किस बात में है ? १२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now