पाश्चात्य राजदर्शन | Pashchatya Rajdarshan

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Pashchatya Rajdarshan by श्यामाचरण वर्मा - Shyamacharan Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्लेटो > अन्य विचार गलत है! प्रक्रति श्रौर जीवशास्त्र के उठहरश और उपमाएँ भी प्रद्धर मात्रा मे पाई जती है । रिपन्लिक प्नेटो का पहला महान्‌ प्रन्थ॒ठै 1 ( इसके पटने कृ छोटी और कम महत्वपूर्णा रचताये निर्मित हो चुकी थी। ) रिपब्लिक में प्लेटो के प्रारम्भिक विचारों की अ्रपूर्णता व युवा कल्पना के उत्साह का प्रमाण स्पष्ट रूप से मिलता है। कल्पना की उड़ान में प्लेटो ने अपने विचारों की व्यावह्ारिकता को भुला दिया । स्टेट्समेन तुलनात्मक रूप से कम महत्वपूर्ण है । यह राजनीतिक पश्भिपाश्रों का सकलन है | लॉज प्लेटो की अतिम रचना हे जिसे वह अ्रपूर्ण ही छोड गया । यह प्रौढ, परिपक्व व अनुभवी मस्तिष्क की कृति है तथा रियब्लिक के अनेक विचारों में या तो परिवर्तत कर दिया गया या सशोधन । आयु बढने के साथ यौवन की कल्पना का उत्साह भी कम होता गया ओर व्यावहारिक अनुभवों ने भी विचारों में परिवर्तत करता आवश्यक वना दिया | यह जानते हुए भी कि रिपव्निक का आदर्श कल्पना से बनाया गया है प्लेटो को यह विश्वास था कि उचित सुविवाये मिलने पर इस कल्पना को व्यावहारिक रूप दिया जा सकता है | ३६७ ईस्वी पूर्व में वह साइराक्यूज ( $978००$९ ) के युवा उत्तराधिकारी डायोतीसियस ‹ 070098४5 ) तीय को शिक्षा प्रदान करने के लिये आमत्रित किया गया । शासक को दार्शनिक बनाने के इस अवसर का प्लेटो ने लाभ उठाना चाहा | इस उद्दे श्य से असफलता और निराशा मिलने पर उसे रिपब्लिक का आदर्श त्यागना पडा | प्लेटो का सवूर्ण दर्गत इन तीन पुस्तकों में ही सम्मिलित नहीं माना जा सकता है | वह निश्चित है कि शिक्षक होते के नाते उसके विचारों की व्यापक व्याख्या अकादमी में दिये गये व्याख्यानों मे हुई होगी। दुर्भाग्यवश हमे प्लेटो के इन व्याख्यानों का कोई अश प्राप्त नहीं हो सका फिर भी इन तीन प्रन्यों मे जो सामग्री मिलती है वह उसके दर्शन को समभने के लिये पर्याप्त है । प्नटो के सपुरां दर्शन का श्रारभस्थल ग्रौर सभी विचारो का केन रिपन्निक्‌ ही ই । জানত (8০2192010 ]৩৬/৩৮০ ঈ শী रिपग्लिक को प्लेटो की सर्वश्रेष्ठ रचना बतलाया तया यह्‌ कहा कि यह्‌ महान्‌ ग्रन्थ अन्य सभी सवादो का केन्द्र है। रिपब्लिक एक जटिल, व्यापक और कल्पता-प्रधान ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ का तेत्र इतना विशाल है कि निश्चित शब्दों में इस ग्रन्थ का विषय नही बतलाया जा सकता है । जाजं सेबाइन लिखते है कि “रिपव्चिक एक ऐसी पुस्तक है जो वर्गीकरण को चुनौती देती है। इसे आधुनिक सामाजिक अव्ययनत या आझ्राथुनिक विज्ञान के किसी वर्ग मे नहीं रखा जा सकता ।” विपय की व्यापकता ने इस ग्रन्थ को अपने श्राप में ही एक वर्ग बना दिया है । प्लेटो ने इस पुस्तक को दो नाम दिये रिपव्निक (राज्य), या न्याय सबधी किन्तु इसका चेत्रन तो राजनीति हैत विधिशास्त्र | सामाजिक जीवन के हर-एक पहुंचू पर




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