दिवाकर दिव्या ज्योति भाग -15 | Divakar Divya Jyoti [Bhag 15]
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री जैन दिवाकर - shree jain divakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुण-गौरव ] [ ७
है। मनुष्य मानवभव पाकर अगर धर्म नहीं करता तो मनुष्य
दोनो च्या दै उसके और पशु-पत्ती के जीवन में कुछ सेद्
नहीं रद्द जाता !
आद्रेक ने गंभीर विचार किया । पू्व भव पके जो
संस्कार सुप्त थे, वे जाशूत दो उठे । उसने सोचा कि इस देश
में तो साधु आते नहीं है और श्ार्यावत्त में तीथंकर, ऋषि
मुनि होते हें । वहीं मुझे चल्ननगा चाहिए। वद्दीं सच्चा मार्ग
दिखलाने वाले मित्न सकते हैं | ऐला विचार करके आद्वंक
चल दिये | |
रास्ते में मोशालक, जिसने भगवान मद्दाचीर स्वामी से
अल्लग होकर नया पंथ चला लिया थो, आद्रकुमार को मित्र
गयो | गोशालक ने सोचा-आद्रंकुमार रईस छा लड़का है।
यद मेरे पंथ मे श्रा जायगा तो मेरे पंथ की मदन्ता बढ़ जादगी ।
अतएव गोशालक राजकुमार से सिल्रा और पूछने लगा--
राजकुमार, कहाँ जां रहे हो !
आद-समे क्ञातपुत्र श्रमण भगवानु सदावीर फे पास
जार्टाह।
गोशालक--किस प्रयोजन से जा रहे हो £ .
आद्र--जीवन की सद्दी राद्द तत्नाश करने। :
गोशालक--अजी, घद्दाँ छदां है खी - राद ! में बहुत
दिनों तक मद्दावीर के पास रद्द चुका हूं भर उनकी सब बातें
ज्ञानता हूँ । |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...