दिवाकर दिव्या ज्योति भाग -15 | Divakar Divya Jyoti [Bhag 15]

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Divakar Divya Jyoti [Bhag 15]  by श्री जैन दिवाकर - shree jain divakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुण-गौरव ] [ ७ है। मनुष्य मानवभव पाकर अगर धर्म नहीं करता तो मनुष्य दोनो च्या दै उसके और पशु-पत्ती के जीवन में कुछ सेद्‌ नहीं रद्द जाता ! आद्रेक ने गंभीर विचार किया । पू्व भव पके जो संस्कार सुप्त थे, वे जाशूत दो उठे । उसने सोचा कि इस देश में तो साधु आते नहीं है और श्ार्यावत्त में तीथंकर, ऋषि मुनि होते हें । वहीं मुझे चल्ननगा चाहिए। वद्दीं सच्चा मार्ग दिखलाने वाले मित्न सकते हैं | ऐला विचार करके आद्वंक चल दिये | | रास्ते में मोशालक, जिसने भगवान मद्दाचीर स्वामी से अल्लग होकर नया पंथ चला लिया थो, आद्रकुमार को मित्र गयो | गोशालक ने सोचा-आद्रंकुमार रईस छा लड़का है। यद मेरे पंथ मे श्रा जायगा तो मेरे पंथ की मदन्ता बढ़ जादगी । अतएव गोशालक राजकुमार से सिल्रा और पूछने लगा-- राजकुमार, कहाँ जां रहे हो ! आद-समे क्ञातपुत्र श्रमण भगवानु सदावीर फे पास जार्टाह। गोशालक--किस प्रयोजन से जा रहे हो £ . आद्र--जीवन की सद्दी राद्द तत्नाश करने। : गोशालक--अजी, घद्दाँ छदां है खी - राद ! में बहुत दिनों तक मद्दावीर के पास रद्द चुका हूं भर उनकी सब बातें ज्ञानता हूँ । |




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