वीतराग विज्ञान भाग 3 | Vitrag Vigyan Bhag 3

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Vitrag Vigyan Bhag 3 by हरिलाल जैन - Hari Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ भाग-२ 1 { १९ पो व्यवद्दार है; वह सत्यार्थ नहीं है परन्तु असत्याथ है, अभूतार्थ है। जो सच्चा सोक्षमार्ग है उसीकी सोक्षमागें कहना वह संत्याथे ঃ অহ सिम्धय है। यदं सत्यार्थको ही निश्चय कद्‌} है यदह सदत्त्वकी वाव है ¢ निश्वयको सत्यार्थ कहा उसका अथ यह हुआ कि व्यवहार अस्यार्थ हट} निर्विकल्प शुद्ध आत्मके आश्रयसे जो र्नत्रयरूप छुदध परिणति हुई वह सोक्षमागं है, वही सच्चा मोक्षमामें है--ऐसा समझना । आंशिक शुद्धता पूर्ण शुढ्धताका कारण! है, इसमें कारण और कार्यकी एक जाति होनेसे यद निश्चयकारण है; परन्तु उसके साथमें जोः अशुद्धता है (-शुभरांग है ) बह तो शुद्धताका सच्चा कारण नहीं है; परन्तु शुद्धताकी साथमें मूमिकाके अनुसार देव-गुरु-शास्तरकी श्रद्धा; नव तत्त्वका - ज्ञान , ओर पंचमदान्रतादिके विकल्प होते ई, उनको भी ‹ मोक्षमामका सहकारी › जानकर ( -वे स्वयं सोक्षमार्ग नहीं हैं परन्तु मोक्षमार्गे साथ साथ रहने वारे ई भतः सहकारी जानकर ) उपचारसे उनको भी मोक्षमागें कहते हैं परन्तु वह सत्यार्थ मोक्षमारः नहीं है, अतः उनको व्यवहार कदा, गौण कदा, ओौर असत्यार्थ कहा; वे अशुद्ध हैँ, पराश्चित हैं। ओर शुद्ध आत्माके आश्रयसे रगरद्ित सम्यग्ददीन-ज्ञान-चारिघ्ररूप जो मोक्षमाम ड वह्‌ निश्यः है, मुख्य है, सत्यार्थ है, शुद्ध हे और स्वाश्रित है। इसप्रकार * दुविध ? मागं कहा उसमे एक ही सत्यार्थ है-- जो सत्यारथरूएः सो निश्चय ” एक निश्चय सोक्षम/मं ही सच्चा है। इसप्रकारसे मोक्ष- सार्गके स्वरूपका जो विचार किया जाय वद्द विचार सच्चा है; परन्त




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