मुक्ति का मार्ग | Mukti Ka Marg

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Mukti Ka Marg  by हरिलाल जैन - Hari Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरिलाल जैन - Hari Jain

Add Infomation AboutHari Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रबचन है श तत्त्वज्ञान शभ्रात्मज्ञान यह सब मगलस्वरूप है भ्रौर मगलका उपाय भी यहो है । बह भ्रार्माकों स्वरूप-सम्पदा प्राप्त करने- रूप मगलका कारण है । इसलिये यहाँ पर शात्रकारने शाखर के प्रारम्भमें हो उसे नमस्कार किया है । इस वोतरागविज्ञान के कारण ही झहुंतादि सदान हुधे हैं । वीतराग-विज्ञानकों प्राप्त करके हो पच परमे्लियोंने शुद्ध श्रात्मतत्व पाया है । इस ग्र थके कर्ता पण्डितजी श्री भागचन्वजी गृहस्थ थे । उनने इस ग्र थपे गृहोतमिथ्यात्वकों छुड़ानेके लिये बहुत हो प्रभावक ढगसे कथन किया है । शुद्ध जनसम्प्रवाथ पाकरके भी बहुतसे जीव सच्चे देव शाख्र भ्रौर ग्रुका निणंय नहीं करते श्र यदि कोई जीव मात्र सच्चे देव दाख गुरुका निर्णय करले किन्तु श्रात्मतर्दका निणंय न करे तो उसके शुभभाव होगा लेकिन घ्मं नहीं होगा । श्रोर सच्चे देव शासन गुरुकों पहिचान बिना भझोर उनकी भक्ति प्रगट हुये बिना श्रात्माकों पहिचान नहीं हो सकतो । इसलिये सबसे पहले सत्ताश्वरूपमे देव शात् गुरुके सच्चे स्वरूपका वर्णन किया है । इसको पहचान व बहुमान करना प्रत्येक जेनका कत्तंव्य है । सभी जीव सुख चाहते हैं । जो काम करना चाहते हैं वह सब सुख प्राप्त करनेको इच्छासे हो करते हैं । प्रत्येक क्रियासे वे सुख प्राप्त करना चाहते हैं । दूसरेको मारते हैं वह भी सुखके लिये पर-वस्तुकी चोरी करते हैं वह भी सुखके लिये भूठ बोलते हैं सो भी सुखके लिये भ्ोर घन दोलतका परिप्रह करते हैं सो भी सुखके लिये इसप्रकार झ्नकविध पाप करके भी ध्रज्ञानो जोव




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now