स्त्री - समस्या | Stree Samasya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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এ, [क वन्ति ! क्रान्ति ! क्रान्ति { जिधर देखी, आज यदी गन मची हदं ै। न्स की रज्यक्रान्ति से, आघुनियः रुप में, इसका उद्धव हुआ ह; अर, तवते अवतक, यद उत्तरोत्तर जिकसित ही होती चढी आ रही है। दुनिया में किसी भी भोर दृष्टिपात कीजिए --कहीं राजनतिक तो कहीं सार्थिक, कही धार्मिक तो कहीं नेतिक--किसी-न-किसी प्रकार की क्रान्ति का ताण्ठव सर्वत्र, थोढ़े-ब्रहुत रूप में, दौखे ही गा । न-जाने कितने राजवंश छित्न-भिन्न हो चुके हैं, न-चाने कितने मदान्ध दासक घराशायी हो चुके हैं, न-जाने कित्तमे गयवियों का मान-सर्दन हो झुका है, नन्‍जाने क्रितनी परय्परायं दद चुकी ह, जीर मनाने मौर भी कितनी उथट- पुयल मच चुकी दै क्रान्ति के नाम पर ! न्स का च्ल, छुई गया; रूस के जार का कुत्छेआम हो गया; आज के स्वेच्छाचारियों और अत्याचारियों के आग्य का भी कोन 'डिक्वाना है ? और सामाजिक अथाये' ९--ओोह, कहाँ है आज




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