नागरिक शिक्षा | Nagrik Shiksha

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Nagrik Shiksha by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[विपये प्रवन्त = मे सहयोग करना छोड़दें तो इससे सबकी ही हानि होगी | ठीक हमा तर हरक मनुष्य की उम्नत्ति से समाज की उन्नति में सहा- यता मिलती £ै; समाज के भिन्न-भिन्न अंगो का, अपने अलग- प्रनग स्वार्थ का दिचार करना अनुचित हैं । समाज के हित में इमारा दित ह--पाटको | जगा विचार करने से यह बात ग्पप्ट हो जायगी कि यदि हम अपनी भलाए़ था कल्याश चाहने ह तो हमे समाज के दूसरे अंगों > (নে দ্ধ समुचित ध्यान रखना घादिण। तुस जानन्न मिः जब हमार पास पास के किसो धान में प्लग आदि बीमारी पन साना हैं तो। इसका हसारे यहाँ झआासा जिन्न षडह, আট हम चाहत দিতো প্রন হা লোন मा तो अल य রি ৫ ष्की बाप सह | विस अपने रव] साप, टरा ररे. स्मा ২11 বা ম। লিঅব ঘা সার परे बे




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