आर्य जगत | Aarya Jagat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1
१
সা
ऋषि-निबाणि-अंक; १९३१
हम आगे केसे बढ़ें !
(श्री रलाराम जी एम० ए०, एम० एल० ए० प्रिसोपल दयानन्द कालेज होश्यारपुर )
টয় 8 ৪3737878764 (>
आयभसमाज ने वैदिक धम रक्ता का कम खुर
किया । कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति इस की मुक्त-कण्ठ
से प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता । स्वामी दया-
न्द् कै खरडनात्मक प्रश्रः से अन्य मवानुयायी
तो इतने धबर! ठे छि इन्त दयानन्द को शांत
भंग करने बाला तथा घा्पदायि% कल्ह् ইহ! করল
बाला कहना आरम्भ कर दिया | सत्याथे प्रकाश को
जच्त करने का आंदोलन ज्ञोर से-अ।रम्भ कर হিযা।
दिन्ध में तो उसे जब्त करके ही दिख। दिया। ये
লীনা इस बात को तो भूल गये कि पहल: किप्त क्री
थी | द्यान-द ने विरोवियों को उनके हीं शस्त्रों से
परास्त कर दिया। हिंदु में भपने घर, अपनी
संस्कृति तथा स्रभ्यता को भर ह्वीनता ঘা ইবন
का भाव पेदा हो चुका था। यह भाव भानव का
लथा जातियों का परम शत्रु है। महापुरुष समय
समय पर आकर व्यक्तियों तथा जातियों को इस
होनता की विनाशक दृल्लदूल से निककषते हैं।। दया-
नहद् की प्रतिभाशाज्षी सिध्ष्वनी ने- हमें इस गते॑
से मिकात॑ कर भात्म-सम्मान ी हस्व भूमि पर
बिठा विया । दयानन्द ने हमें अपनी संस्कृति तथा
अपनी सभ्यता के लिए गौरव का भाव पेदा कर
दिया | मानव की अ्रवनति तथे। उन्तति, उत्कर्ष तथा
झापकंष सब उसके विचारों में छिप है। कतुमयों-
अद बषः, वथा त्रतुरस्मिन् लोके मदति, तथेतः भ्व
अदिः । भयोत् (पुरष विकरे का घथुदाद है।:
के विकार हते है पेश ही कह.
बनवा -है।) पुरुष वातं का समुदाय है।
विचार निम्नकोटी के हों तो खारा क्रामाजिक ज॑ बन
निरुत्थाहू, भय तथा दीनता का एक सजीव भित्र
बन ज्ञाता है। विचार उच्च, दज्ज्वक्ष तथा सबस्त
और शिव हों तो मानव प्रतिभाशाली तथा गौरब-
युक्त बन जाता है। निधेनता इतती भयानक वस्सु
नटी जितनी मानिक दवेता तथा हदयदर्बह्य
तथा चुद्रता है। अनिवाय विधंनता कोई भर भूषण
नहीं | स्वे च्छक निर्धनता तो मानव महत्व की एड
भावश्यञ शते है । स्वामी दयानन्द ते पराधीनता
की झड़ कट दी जब उसने प्रत्येक भारतवासी को
भमाखीयता तथा भ[रत का युक्तिवुक्त मढ्त बना
दिया | दुय नन्द मे सुव घममा कि पएरवमीव तर्क
तथा पिज्ञान के सामने अंब परम्परा-भाधारित
द्धा तथः अयुक्तिसंगत व् विज्ञान-विरोधी मंतव्य
हमारे पुनरुथ न में सहायक न इोगे। दयानन्द के
युक्त प्रहु रो के छामने बिोषिषों के अादेपः कोड
तथा विफल हो गये । स्वामी दबानन्द् इसी कारक
भारतीय र/ट्रीयता का सच्चा जन्मदाता औ<
গ্রমাজ इ८ का पोषक बनसा।
परन्तु बह मंजिल तो शुज्रर गई। भारत के
हृदय ने भय समाज को अपना लिया है। भावं
सम्राज का सामाजिक सुधार का प्रोग्राम दादू-विवादं
की मंजिल से परे जाकर अब तो भांचरण की বেজ
पर है। अब प्रश यह है कि आय समाज गे
केसे बढ़े । भागे बढ़ नहीं रहा, यह तो निर्दिबाद
है। हिंदी सादा की आय समाज ने अदुमुत सेंदा की।
8 সীংজাহিধ কিবা। ঘহন্ত্ু आय समाज की लींद
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