टालस्टाय के सिद्धान्त | Talstay Ke Sidhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संक्षिम जीवनी । ५
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फा भेज दिया । किन्तु उनके इस्तीफे की मंज़री भी न आने पाई
थीज्नि प्रसिद्ध “ क्रीमियन युद्ध » लिङ गया । टालृष्टाय की स्वा-
माविक वीरता ने अपना प्रभाव दिखलाया। उन्होंने फौरन उस
इस्तीफे को बापस करा लिया और युद्धस्थल में जाने की इच्छा
प्रकट की । इस समय उन्होंने सेना की उच्च परीक्षा पास कर ली
थी। अत्व वे सिवाष्ठोपील के इतिहास-प्रसिद्ध दुग में अफ़सर
को हैसियत से भेजे गये। इतिहासज्ञ पाठक जानते होंगे कि “ क्री-
मिथन युद्ध ” में रूसियों को अंग्रेजों और फ्रांसीसियों का सामना
करना पड़ा था |
टालूस््टाय इस भीपण युद्ध में प्रवृत्त थे। वे नित्य জী
भनुष्यों को भरते हुए देखते थे। युद्ध के इन भयानक दृश्यों का
प्रभाव दालृस्टाय के हृदय सें बहुत अधिक पड़ा । उनका एक उप-
न्यास जिसका नाम “युद्ध आर शान्ति ( फ) ५1५ [५५५ .}
है, इसी विषय से भरा हुआ है। युद्ध का मीपण चित्र जसा टालू-
इटाय ले इस उपन्यास में खींचा है वसा अन्य कहीं नहीं मिल
सकता । यदि टालूस्टाय ने “खिवास्टोपोल” की भीषण लड़ाई में
भाग न चिया हेता तो कदाचित् वे इतना अच्छा उपन्यास न
लिख सकते । सन् १८५८५ में “ सिवास्टोपोल 2: का पतन हज,
रपी फौज तितर बितर हो गई । टालृस्टाय अन्तिम घटनाओं
की शिषो लेकर राजधानी पहुँचे । वहाँ से वे घर लौटे | 'घर জীব,
कर उन्होंने सेना से सदा के लिए चिदाई ले ली ।
सेना से बिदाई ले लेने पर सलष्टाय को विदेशयात्रा की
धुत्त सवार हुईं । उस समय रूस में रेलों की संख्या बहुत कम थी ।
জী पीटसबग से पोलेड की राजधानी वारसा तक वे घोड़ागाड़ी में
और वहां से रेल द्वारा पेरिस को चल दिये | पेरिस में पहुंच-कर
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