टालस्टाय के सिद्धान्त | Talstay Ke Sidhant

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Talstay Ke Sidhant by जनार्दन भट्ट - Janardan Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संक्षिम जीवनी । ५ नण ग +~ त चम ९ द च ०१ + ^ ~~~ ^~“ -^~- ~ फा भेज दिया । किन्तु उनके इस्तीफे की मंज़री भी न आने पाई थीज्नि प्रसिद्ध “ क्रीमियन युद्ध » लिङ गया । टालृष्टाय की स्वा- माविक वीरता ने अपना प्रभाव दिखलाया। उन्होंने फौरन उस इस्तीफे को बापस करा लिया और युद्धस्थल में जाने की इच्छा प्रकट की । इस समय उन्होंने सेना की उच्च परीक्षा पास कर ली थी। अत्व वे सिवाष्ठोपील के इतिहास-प्रसिद्ध दुग में अफ़सर को हैसियत से भेजे गये। इतिहासज्ञ पाठक जानते होंगे कि “ क्री- मिथन युद्ध ” में रूसियों को अंग्रेजों और फ्रांसीसियों का सामना करना पड़ा था | टालूस्‍्टाय इस भीपण युद्ध में प्रवृत्त थे। वे नित्य জী भनुष्यों को भरते हुए देखते थे। युद्ध के इन भयानक दृश्यों का प्रभाव दालृस्टाय के हृदय सें बहुत अधिक पड़ा । उनका एक उप- न्यास जिसका नाम “युद्ध आर शान्ति ( फ) ५1५ [५५५ .} है, इसी विषय से भरा हुआ है। युद्ध का मीपण चित्र जसा टालू- इटाय ले इस उपन्यास में खींचा है वसा अन्य कहीं नहीं मिल सकता । यदि टालूस्टाय ने “खिवास्टोपोल” की भीषण लड़ाई में भाग न चिया हेता तो कदाचित्‌ वे इतना अच्छा उपन्यास न लिख सकते । सन्‌ १८५८५ में “ सिवास्टोपोल 2: का पतन हज, रपी फौज तितर बितर हो गई । टालृस्टाय अन्तिम घटनाओं की शिषो लेकर राजधानी पहुँचे । वहाँ से वे घर लौटे | 'घर জীব, कर उन्होंने सेना से सदा के लिए चिदाई ले ली । सेना से बिदाई ले लेने पर सलष्टाय को विदेशयात्रा की धुत्त सवार हुईं । उस समय रूस में रेलों की संख्या बहुत कम थी । জী पीटसबग से पोलेड की राजधानी वारसा तक वे घोड़ागाड़ी में और वहां से रेल द्वारा पेरिस को चल दिये | पेरिस में पहुंच-कर




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