विश्लेषण | Vishleshan

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Vishleshan by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ % | स्वप्नलोक में आज जागरण के समय . प्रयाशा की उन्कठा में पूर्ण था हृदय हमारा, फूल रहा था कुसुम सा! देर तुम्हारे आने में थी, इसलिये कलियो की माला विरचित की थी कि, हा जब तक तुम आश्रोंगे ये खिल जायेगी ! श्रा खोल देखा तो चन्द्रालोक मे रजित कोमल बादल নল में छा गये, जिसपर पवन सहारे तुम हो जा হই! हाय, कली थी एक हृदय के पास ही, माला में वह गडने लगी, न खिल सकी ! इस ग्रकार की पक्तियों को पढने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कवि रहस्यवादी बनने के प्रथम प्रयास में कष्ट-कल्पित भावों के जाल में बुरी तरहं उलभ गया इ श्रौर ब्रान्तरिके अ्रनभूति से वह कोसों दूर है फिर भी अनुकरण का यह प्रयास इस दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है कि उसने हिन्दी कविता की गति को मूलतः नये प्रवाहपथ की ओर मोड़ने में सफलता पायी है | जिन कविताओं पर रवीनद्धनाथ की छाया नहीं पडी है, वे अपने सहज खरम के विकाश से स्वयं आमोदित हैं। उदाहरण के लिये; ` शून्य हृदय में प्रेम जलद माला, কন फिर पिर आवेगी !? वर्षा .इन . आखों से होंगी, कब हरियाली छावेगी ? रिक्त हो रही मधु से, सौरभ सूख रहा है आतप से, सुमन कली खिलकर कब अपनी पंखड़िया बिखरावेगी १




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