काव्य - कला | Kavya Kala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
261
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० काव्यन्कला
परिष्कृत तथा सभ्य होगी उसकी कल्नाकृतियाँ भी उतनी ही
अधिक सुंदर और सुष्ठु होंगी। इससे ত্বগ্ত ই कि कला-
निर्माण में आचार का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। परंतु कुछ
पाश्चात्य विद्वानों ने इस संबंध में कुछ ऐसे प्रवादों की स्ष्टि की
है, जिससे भ्रम बढ़ रहा है। एक सिद्धांत यह उपस्थित किया
गया है कि खप्त में मनुष्य की कल्पना और भावना उन दिशाओं
की ओर जाती हैं जिन दिशाओं में वे समाज की दृष्टि के सामने
नहीं जा पातीं। इसी सखप्न-सिद्धांत को कुछ विद्वान कविता
तथा कल्ाओं में भी चरिताथे करते हैं। परंतु इस प्रकार के
अनोखे सिद्धांत अधिकांश में अधसत्य ही होते हैं. और कलाओं
का अनिष्ट करने में सहायक बन जाते हैं। यदि यह खप्न-
सिद्धांत खीकार कर लिया जाय और काव्य तथा अन्य कलायं
सें भी इसका अधिकार हो जाय तब तो कलाओं से आचार
का बहिष्कार ही समझना चाहिए। परंतु इस सिद्धांत के
अपवाद इतने प्रत्यक्ष हैं कि यह क्रिसी प्रकार निश्रांत नहीं
माना जा सकता ।
विद्वानों का एक दूसरा दल यथार्थेबाद के नाम पर भी
बहुत कुछ ऐसी ही बातें कहता है। मनुष्य के शरीर-संघटनः
का विश्लेषण करके ये विद्वान् यह आभास देते हैं कि उसकी
मूल वृत्तियाँ आहार, निद्रा आदि शरीरिक आवश्यकताओं की
तृप्ति के लिए ही होती हैं। इनके अतिरिक्त मनुष्यों की जो'
अन्य जद्त्त वृत्तियाँ होती है वे दृढ़मुल नहीं हैं, केवल सभ्यता
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