रेखाएं बोल उठीं | Rekhain Bol Uthi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रेखाएं बोल उर्ठी
महत्व नहीं दिया | फेंटासिया! से जो, प्रेरणा तुम्हें मिली हे, उसे अब
आगे बढ़ाओ, ख़्वाह-म-ख़्वाह पीछे मुड़-सुड़कर देखने से क्या ल्लाभ १?”
धह “হাঁ? में सिर हिलाता रहा और मैंने समझ लिया कि मेंने उसके
सम्मुख जो चित्र अस्तुत किया है उसकी रेखा इतनी ज़ोरदार हँ कि
अब वह मेरे तकं का प्रस्युत्तर नहीं दे सकता ।
मैंने बात को थोड़ा आगे बढ़ाते हुए कहा--'फेण्टासिया? फिल्म
को में ध्वनियों, रंगों और रेखाओं की कविता कह सकता हूँ ।”
फिर मेंने बड़ी तरकीब से धवनियों और रंगों को इस तालिका से
निकालते हुए केवल रेखाओं की बात छेड़ दी--“कला के ज्षेत्र में ही
नहीं--जीवन के क्षेत्र में भी रेखाओं की प्रधानता है ।”
वह बोला--पर रेखाएँ तो केवल रेखाएँ हैं; व्यर्थ, निरर्थक
और प्राणहीन--यदि रंग उन्हें छू न ले' | और जहाँ तक ध्वनियों का
सम्बन्ध है, वह तो स्पष्ट है, क्योकि 'फेण्टासिया? ने यह सिद्ध कर दिया
है कि जहाँ भी रेखाएं और रंग नज्ञर आति हैँ उनके पीठे ध्वनियां হজ
रही हैं अथवा वे ध्वनियों के ही प्रतीक हैं ।?”
में डर गया कि कहीं आज फिर रूपचेतन्य मेरे तक पर बाज़ी न
ले जाय । मेंने कहा--“पर मेरे यार, तुम रेखाओं के महस््व को कम
नहीं कर सकते । आधुनिक रिकार्डिंग यन्त्र कोमल सेंलोलाइड और
लाख के ऊपर ध्वनियों की रेखाएँ खींचते हैं और फिर उन्हीं रेखाश्रों
को कुरेदने अथवा उन पर सूई चलाने से उसी संगीत की प्रतिध्चनियां
निकलती हैं । यह सब तो आधुनिक विज्ञान को बात है। पर इसका
यह अर्थ नहीं कि आज से पहले मनुष्य ने इस सिद्धान्त को समझा ही
नहीं था । जबलपुर के निकट मदनमहत्न का निर्माण ऐसे ही विशिष्ट
शिल्पियों ने किया था । इस महल्ल में वायु के प्रवाह का प्रतिरोध करने
के लिये कुछ ऐसे स्थल्न बनाये गये हैं जिनसे टकराकर वायु संगीत में
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