प्राचीन काव्यों की रूप परम्परा | Prachin Kavyon Ki Roop-prampra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prachin Kavyon Ki Roop-prampra by अगरचंद नाहटा - Agarchand Nahta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

Add Infomation AboutAgarchandra Nahta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| 1 =-= 23 हुं? পল কহ ईशा গাছ क চর 4 58 टेक आर নু ^+ ५ ४ ~ রহ पहूतीय तिहुणी हिव रति, चरति पहूती यसंत; दह दिति परसह परिमल, निरमल श्या नभ श्रत ।। ৭ (प्रा° यु° काव्य वसत विलास , দু १५) समरवि त्रिभ्रुवनसासखि, कामरि सिरि सिखगास। कविय घयरि जा वरसद सरइस श्रमिउ भ्रपाख।। १॥ ( जोरापल्‍ली पाश्वनाथ फागु, प° &७ ) यह दौली फागर-संबधी सभी रचनाभ्रो मे नही भ्रपनाई गर्‌ है । स्थूलभद्रफाग भौर पिछले अन्य फागों मे भी यह नही है । फागु और धमाल दोनों ही एक प्रसग से संबंधित है, भ्रतः कई रचनाश्रो की संज्ञा किसी ने फाग्रु दी है तो किसी ने धमाल | फागु और धमाल के छंद एवं रागिनी में श्रंतर होगा, पर पीछे से ये दोनो नाम होली के श्रासपास गाई जानेवाली रचनाश्रों के लिये प्रयुक्त होने लगे | प्राचीन दिगबर रचनाश्रो मे धमाल” का प्राकृत रूप 'ढमाल' भी मिलता है | इधर लगभग डेढ सौ वर्षो से छोटे-छोटे भगन डफ औ्औौर चगों पर गाए जाने लगे है, उनकी सज्ञा 'होरी' भी पाई जाती है। फाग्रु एव धमाल-संज्ञक रचनाएँ इनसे काफी बड़ी होती थी । बहुत से व्यक्ति मिल कर चग टोल, डफ श्रौर भामि श्रादि वाद्योके साथ उन्ह गति थे, तत्र एक कोलाहल सा मच जाता धा, इसे बोलचाल मे धमाल? का प्रयोग कोलाहल वा उपद्रव' के श्रर्थ मे भी होता है । फागु-संज्ञक रचनाएँ धमाल से अधिक प्राचीन श्रौर श्रधिक रस्या मे मिलती है । सं° १३५० के प्रासपास से एसी रचनाप्रो का प्रारभ होता है। उपलब्ध फागरु काव्यों मे खरतरगच्छीय जिनप्रतोध सूरि का जितचद सूरि फागु सर्वप्रथम श्रौर सवते प्राचीन है । प्रठारहवी शताब्दी के प्रारभ के खरतरणच्छीय यति राजहषं द्वारा रचित 'नेमिफाग' श्रतिम कृति है । राजस्थानी एवं गुजराती में फागु-संज्ञक लगभग ५० रचनाएँ उपलब्ध हुई है, जिनका परिचय लेन सत्यप्रकाश ( वषं ११, १२ एव १४ ) में प्रकाशित है। धमाल- सज्ञक रचनाएँ ५-१० ही प्राप्त है श्रौर वे सतरहवी शताब्दी की ही श्रधिक है । (६-८ ) विवाहलो, धवल, मंगल--जिम्त रचना में विवाह का वर्णाव हो उसे 'विवाहला' कहते है। जन कवियों ने नेमिनाथ श्रादि तीर्थकरो और जैनाचार्यो के 'सयमश्री' के साथ विवाह के प्रसंग को लेकर बहुत से विवाहले रचे है । श्राचार्यो के लौकिक विवाह का तो कोई प्रसंग था नही, क्योंकि वे ब्रह्मचारी ही रहते थे; भ्रतः उसके ५ क সপ পপ वयर त= ৭ সপ তি লা পপ পা च्छ পপ ^ क, ५ च




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now