श्लोक संग्रह | Shlok-sangrah

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Shlok-sangrah by भूरसिंह शेखावत - Bhoorsingh Shekhawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्द जा कक রি ५ १६६ ‰ © प्र ४ ८ ॐ = # > ॐ ~ -- চি ঠা ५ পলি ~~न न ष ष ক | ध्य्‌ २ 1 | (पा ५0 ०१.०9 0४ क ४ 9 0०५ + द /६/६/ क र ०” পতি 0 १० ८ 0 १ १ ` अपनचुपाताशथपु राष्ट्ररक्षा पश्चच यज्ञा; काथेता तृषाण ॥ १४ ॥ [ थत्निस्फति | १५ ৪৯টি, চু কি इ को दण्ड देना, सज्जन पुरुष का सत्कार करना न्याय से खजाने को वंढ़ाना; अर्थी अथोत्‌ मुकदमे बालों में पक्षपात न करना, अपने देश की चिन्ता और रक्षा रखना, राजाओं के लिये ये पांच यज्ञ कह्दे गये है अर्थात्‌ राजाओं को इन स- त्क्मों फा फल यज्ञफल के समान होता छे ॥ १४ ॥ सोऽदमाजन्भशुद्धानामाफलोदयकमेष्णय्‌ । आसमुद्रक्षितीशामामानाकरथवत्मेनाध्‌ ॥ १४ ॥ [ रघुवेश प्रथम से | वह में ( कालिदास ) ज-स से लेकर शुद्ध, फलसिद्धि पयन्त कर्म करने वाले, समुदरान्त पृथ्वी के स्वामी स्त्रगं तक जिनका रथ जासक्ता है ॥ १५॥ शेशवे5्म्यरताविद्यानां योवने विषयापिशाम | बाधक प्लानेदत्तीना योगनान्ते तलुत्यजामू ॥ १६ ॥ [ रघुवंश | घालकपन में विद्याभ्यास करने वाले, जवानी में सांसारिक विपय-भोगों की इच्छा करने वाले, ब्ृद्धावस्था में सुनियों की- | सी वृत्ति रखने वाले ओर मरण-समय में योग के अनुकूल | देह याग करने वाले ।॥ १६ ॥ 5 নি अ ~~ জি




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