श्लोक संग्रह | Shlok-sangrah
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पश्चच यज्ञा; काथेता तृषाण ॥ १४ ॥
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इ को दण्ड देना, सज्जन पुरुष का सत्कार करना न्याय
से खजाने को वंढ़ाना; अर्थी अथोत् मुकदमे बालों में पक्षपात
न करना, अपने देश की चिन्ता और रक्षा रखना, राजाओं
के लिये ये पांच यज्ञ कह्दे गये है अर्थात् राजाओं को इन स-
त्क्मों फा फल यज्ञफल के समान होता छे ॥ १४ ॥
सोऽदमाजन्भशुद्धानामाफलोदयकमेष्णय् ।
आसमुद्रक्षितीशामामानाकरथवत्मेनाध् ॥ १४ ॥
[ रघुवेश प्रथम से |
वह में ( कालिदास ) ज-स से लेकर शुद्ध, फलसिद्धि
पयन्त कर्म करने वाले, समुदरान्त पृथ्वी के स्वामी स्त्रगं तक
जिनका रथ जासक्ता है ॥ १५॥
शेशवे5्म्यरताविद्यानां योवने विषयापिशाम |
बाधक प्लानेदत्तीना योगनान्ते तलुत्यजामू ॥ १६ ॥
[ रघुवंश |
घालकपन में विद्याभ्यास करने वाले, जवानी में सांसारिक
विपय-भोगों की इच्छा करने वाले, ब्ृद्धावस्था में सुनियों की-
| सी वृत्ति रखने वाले ओर मरण-समय में योग के अनुकूल
| देह याग करने वाले ।॥ १६ ॥ 5 নি
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