वेदकालीन राजयव्यवस्था | Vedkalin Rajyvyavastha

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Vedkalin Rajyvyavastha by श्यामलाल पाण्डेय - Shyamlal Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चदिक साहित्य और राजनीतिक सिद्ात ই के रचनानशत के निर्धाएण हेतु समी प्रयत्त विफल हागें भौर इस सम्बंध म॑ सभी प्रयास स्यथ मिद्ध हग) परन्तु विद्वाना का दूसरा समुदाय इस पष्डित समाज व मत से सहमत नहीं है। यह्‌ विद्‌ मण्डन वेद कौ भपौस्पेय एवं प्रनादि मानने वे पक्ष में मही है। इन विद्राना के मतानुसार बद छपिया के चिन्तन वा एत टै1 वेद झाहीं वो शति हा बेद मत्रा ধা सजन पझनेब' ऋषिया द्वारा समय-समय पर हुआ है। में मंत्र बहुत सप्य तव' उस बाल की जनता में प्रवाहित रह। समुचित समय के उपरान्त इन वद-मत्रा बा समहीत बार वेदओयों-- छा बजू भौर साम>-वा निर्माण क्या गया। ये वेट मत्र प्राचीन बाल मे क्‌इ श्रेणिया में विमक्त होवार भनेव' ऋषि-परिवारा वी सम्पत्ति रहे हैं। इन परिवारों भ पिता-युत्र भ्रपवा गुई शिष्य परम्परानुसार ये श्रेणिवद्ध मंत्र जीवित एवं जाग्रत रुप म प्रवाहित रहे। इसी भाषार पर वेद श्रुति वराम स श्र्तिद्ध हैं। इन ऋषि- परिदार! ने श्र ऋषि गृत्प्रघद, विश्वसित्र, वामदेव, फ्रक्ि, मरदाज भौर वमिष्य मुध्य हैं। समय व्यतीत होने पर इन मत्रा (ऋचाशो) का सवलन वर ऋग्येद वा निर्माण विया गया । इस अकार ऋगंद सतित श्रय है। वह किसी एवं ध्यक्ित की रचना नहीं हैं भौर -प निसी एन' व्यस्त विशेष वे चितत बा हो फंस है, भौर इसी प्रशार আবি विमा एके निरिचित्र ग्रमय की इति भी নহী হ। शतिपय पार्वात्य बिढ्ानो पा मत है कि' ऋग्वद के द्वितीय मण्व्ल से सप्तम मण्डल हब का ग्रश प्राचीनदरम टै) नवम অহন বা নিলি ই মনা कौ दिपययस्तु के भ्राधार पर हुआ है। प्राट्वाँ मण्डल भी द्वितीय श्रोर सातवें मण्डल पर आधारित बंतलाया गग्रा है। इन विद्वानों का मत है कि दसवाँ मण्डल अन्य सभी मण्डला को भ्रपेक्षा मेषीन है, प्रथम मण्डल मिधित है। इस अकार ऋग्वेद ने अपने प्रस्तुत क्लेवर की धारण करन मे समुचित ममयं लिया होगा) वह बौन सा समय होगा, इस विषय में भी इन विद्वाना मं एकमत नही है! पटु इसमे समौ एवमत है करि वह्‌ समय गौतम बुद्ध धै दन्य-कालं से पूव भारतीय भ्रायो के मारत प्रवे के' पश्चात्‌ की श्रवधि में कोई समय रहा हाया। वत्तिपय विद्वाना ने ऋग्वेद के समय के विषय में लिखा है वि' ऋग्वेद वी रचना-काल की खोज वरना व्यध प्रषास बरता है, क्योंकि इस प्रते शा निश्चित उत्तर आप होना प्र्॒म्भव है। इतना होने पर मो दुख विद्वादा ने ऋग्वद के रचनाकान के निर्धारण करने का प्रया्त किया है। अहिद्व विद्वाव डा० मकय मूलर ये ऋघद का रचवानाक, চা




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