रतिप्रिया | Rati Priya

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Rati Priya by श्री गोपाल आचार्य - Shri Gopal Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रतिप्रिया १४ पीकर मुझे खुशी मनाने का सौका दीजिए ।” पुरुष के आकर बैठते ही उसने पहले उसके प्याले को पूरित किया और फिर अपने पाल्न को । उसने सुना-- ही “वे सज्जन भाज दिखाई नहीं दिये ।” न हाँ । प्बयों ?” “वे यहाँ नही हैं; चले गये ।” “कहाँ ?” “कुछ कह नहीं गये ।”' / “क्यों?” * “कुछ वताया नही ।” फिर भी ?” होदों “क्या आप कुछ बता गये थे?” पुन. एक सुस्कराहट उसके होठों पर छा गई। गम और मैं! एक ५०० ००००० 4 “एक जैसे नहीं है । यही तो ?” ग्हाँ “आप पहले चाय नोश फरमाइये 1” “यह तो चलती रहेगी ।” * “फिर पहले इसे ही चलने दीजिये ।” दो-तीन पूँट पेय के गलें से नीचे उतारने के बाद पुरुष पुन: वोल उठा-- १ “वे तो इस घर के मालिक थे । यही, यायद,'आपने बताया था ग्जी “फिर भी आपको पता नही ?” “यह सही है ।” बात समझ में नहीं आई ?” “सब का सारा कुछ समझ मे नही आता है 1 “कोई रहस्य है। बताने में कुछ आपत्ति है ?” “न रहस्य है, न आपत्ति 1”




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