अवसर | Avsar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अवसर ७
एक स्वर फूटा, भरत अयोध्या से दूर हो गया ।” उतकी आकृति की कठोर
रेखाए शिथिल हो गइ । आखी म॑ सतोष माकने लगा और होठो के कोना
मे हल्वी-सी मुसकान उभरी |
सभा धैयपूवक सम्राट के उत्तर की प्रतीक्षा करती रही कितु सम्राद्
पूण आत्म-सतोप क॑ साथ अपने अधरों बी मुसकान पीते रहे।
अत म फिर महामत्री ही बोले दूत! तुम्हारा समाचार शुभ है।
संम्राठ राजकुमार का कुलल समाचार जानकर सतुष्ट हैं। तुम जाओ।
विश्वाम करो ।/
दूत प्रणाम कर चला गया ।
तब महामती से सकेत पाकर “याय-समिति के सचिव आय पुष्कल
उठकर खडे हुए सम्राट को स्मरण होगा कुछ दिन पूब सम्राट के अग-
रक्षक दल के सनिक विजय वी, वेक्य राजदूत के रथ क घोडों से टकरा
उनके खुरो के नीचे आकर कुचले जाने के कारण मत्यु हो गयी थी।
सम्राट ने इस घटना की जाच याय-समिति को सौंपी थी | -याय-समिति ने
उस दुघटना वी सम्यक खोज की है! अपनी खोज दै पवात् समिति इस
निष्क्प पर पहुची है कि वह दुघटना मात्र आकस्मिक थी। उसमे केक्य
राजदूत की न इच्छा थी, न असावधानी । भतत समिति केकय राजदूत को
निदोपि पाकर अभियोग मुक्त घोषित करती है। सम्राट से प्राथना है कि
বি হয নিগম বী अपनी मायता प्रदान करें।
दशरथ का मस्तिष्क नामों पर अटक गया। जिस सनित की हत्या
हदं बद् दशरथ बे भग रक्षक दल काया] जिसने हृत्या कौ, बहकेक्यका
राजदूत है, अर्थात युधाजित का राजदूत अपराधी पर अभियाग लगाने
वाते सैनिक भरत के अधीन हैं। जाच करन वाला पुष्क्ल है--केकेयी का
सवधी | तो केक्य राजदूत निर्दोष क्या नहीं होगा. !
दशरथ के हाठों दे कोनों पर फिर मुसकान उभरी, क्तु यह सृष्टि
की मुसकान नहीं थी। बोले वे अब भी कुछ नहीं।
मम्नाट को मौन देख महामत्री ही बोले “याय-समिति की जाच से
सम्नाट सतुष्ठ हैं कौर समिति क निणय को मायता देते हैं. ”
सहमा महामन्नी वी वात काटकर दशरथ बोल, किंतु न्याय-समिति
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