चांदा सेठानी | Chanda Sethani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चाँदा सेठानी : 15
मोरी पर भा गयी। आँख पर बफारा लगाती हुई बड़वड़ा उठी, “इस
राम के मारे बीकामेर में अंधड के सिवाय कुछ है हो नहीं, दिन में पाँच
वार झाड़ -बुहारी करो, फिर भी रेत ही रेत मिलती है।”
कांसी पानी का लोढा ले आयी थी। सेठानी ने अपने हाथ में लेकर
दोनों आँखों में छापके मारे । मुंह धोया और दो घूँट पानी भी पिया ।
“परेशान हो जाती हूँ मैं तो ?”
कासी ने दाशंनिक की तरह कहा, “१रेशान हो जाने से क्या होगा ?
सेठानी जी ! हमें तो सारा जीवन इसी बीकानेर में भुजारना है। आधी से
अधिक बीत गयी, जो बाकी बची है वह भी इस तरह अन्धड़ सहते-सहते
बीत जायेगी ।”
सेठानी भीतर आते-आते रुकी । बोली, “कासी बीनणी (बहू) कहाँ
है?”
“सेठानी जी, वह अपनी मौसी के गयी है !”
“मुझे बिना पूछे ही ?”
कासौ ने कोई उत्तर नही दिया ।
“बता, यह भले घर की लुगाइ के लक्षण है? सास को विना पूछे
घर से बाहर कदम रखना कितना वडा कसूर है ? यदि हमारा जमाता
होता तो मास ऐसी धुमन्तू बह को दुवारा घर मे पाँव रखने नही देती ।
बड़ी निलंज्ज हो गयी है यह तो !”
कासी ने कहा, “सेठानीजी ! मुँह मे मूंग डालकर बैठी रहिए । किसे
नेंगा करोगी ? दायी को या वायी को ? किसे भी नंगी करो, नंगी अपनी
ही होगी, शर्म अपनों को ही आयेगी, इज्जत घर की ही जायेगी 1
सेठानी चुप हौ मयी । खिडकी में बैठ गयी ।
गलियाँ सूनी थी ।
ईदगाह बारी की ओर से एक लादे वाला आ रहा था। लादेवाला
फोग को लकड़ियाँ ऊँट पर लादे हुए था । लकड़ियों को इतने तरकीब से
थाँघा हुआ था कि वह उसके बीच बैठ सकता था ।
मोटी डोटी की कमीज, पंछिया, सिर पर चियड़ें-चियडे सा साफा,
पाँवों मे फटी-जूनी पगरखो जो बदरग हो गयी थी ।
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