प्रकृति से वर्ष ज्ञान | Prakriti Se Varsh Gyan

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Prakriti Se Varsh Gyan  by जयशंकर देवशंकर शर्मा - Jayshankar Devshankar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) है पंजैन्य, गरजो भौर बिजली की कंडंक के साथ चंमको । समुद्र को उंद्वे लित करो और दृष्टिजल से पथिवी की गोला करो । तुम्हारे द्वारा बहुल वृष्टि भूमि को प्राप्त ही । तुम्हें भ्राता देखकर किसान श्रपनी गायों को घर की शोर हाँककर ले चले ।। ६ ॥ उत्तम दान देने वाली ह्वय, जलो के स्रोत श्रौर भ्रजगर जेसे कुण्डलीमारे हुये मेध भ्राप सबको रक्षा करें। हवाश्रों से उड़ाकर लाये हुए मेघ पृथिवी पर जल बरसावें ॥ ७॥ हर दिशा में बिजली चमकती हो, हर दिशा में हवाएँ बहती हों, हवाशों से उड़ाकर लाये हुये मेघ पृथिवी पर जल बरसावें ॥ ८ ॥ जल, बिजली, मेघ, वृष्टि, जल के सोते भर भ्र॑जगरों की तरह कुण्डलित बादल सबकी रक्षा करें। हवा्नरों से उड़ाकर लाये हुये मेघ पृथिवी पर जल बरसार्वे ॥ ६॥ जलों से उत्पन्न होने वाली श्रग्नि जो ओषधि का अधिपति है प्रौरं हम सबके शरीरो के अनुकूल है ऐसा वह जातवेद आकाश से अमृत और प्राण के रूप में झ्राकाश सें पृंथिवी पंर जल की वृष्टि करे ॥ ९० ॥ मेघ प्रजापति रूप में समुद्र से जल उठाते हुए उसंका मन्यन करते है या उसे झकमोरते हैं। हे पर्जन्य, वर्षणशील प्रदव का जो रेत या सोम है उसकी वृष्टि करो, अपनी गजजनैं- तजन के साथ यहाँ भ्रावो ॥ ११॥ है असुर, सबके पिता, गड़गड़ाहट के साथ जलों को पृथिवी पर प्रेष्ति करो। जलबुष्टि के साथ मण्डूकों की टढेर ध्वनि ऊँची उठे ॥ १२ ॥|




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