साहित्य समीक्षाज्जलि | Sahitya Samiqsajali

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Sahitya Samiqsajali by सुधीन्द्र - Sudhindra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रोफेसर श्रीनिवास चतुर्वेदी एम० ए० शाख्री-- की थक साहित्य-कला साहित्य देश विशेष की तत्कालीन जनता की चित्तबरत्तिका ्रति- विम्ब है ओर इस कारण जनता की चित्तवृत्ति मँ परिवतेन के साथ- साथ साहित्य में भी परिवतत होता रहता है। राजनीतिक, सामा- जिक, धामिक,सम्प्रदायिक तथा वेयक्तिक परिस्थिति के अनुरूप भावों का उद्रोषन एवं प्रकाशन चौर सञ्चयन्‌ होता है । साहित्य निमांण में इस कारण ऐतिहासिक घटनाओं का पूर प्रभाव प्रत्यक्ष दृष्टिगो- चर होता है | ओर इस कारण साहित्य को जीवन फी व्याख्या! कहा गया है। विषय ओर भाव-कला इसके प्रधान अंग हैं. | वैय- क्तिकता ओर स्वायित्व इसके वास्तविक स्वरूप हैं । सहानुभूति प्रधान उपकरण है | काव्य विज्ञान, इतिहास तथा दशेन आदि इसके विविध विभाग हैं! साहित्य के काव्य ओर विज्ञान दो विशिष्ट भेद हैं एक में कल्पना का साम्राज्य हे तो दूसरे में कमें का | उपन्यास और नाटक काव्य के अन्तर्गत हैं । विज्ञान का उपादान वहिजगेंत्‌ है। कुछ लोग कल्पना को सत्य का विरोवी मानते हैं परन्तु यह निर्विवाद्‌ सिद्ध है कि कल्पना नितान्त निराधार नहीं हो सकती | अस्तिख-रहित पदाथ की कल्पना केसे की जा सकती है, उसका आश्रय तो सत्य होना ही चाहिए | लेखक का कल्लानेपुण्य उसकी कृति से ज्ञात होता है | मनुष्य में जिन नेतिक वृत्तियों का विकास होता है वे समाज का ही फल हैं । समाज में परिवर्तन के सांथ साथ ये वृत्तियाँ परिवर्तित रूप ग्रहण करती चली जाती हैं | इसलिए साहित्यकार को समाज, से विशेय सम्पक रखना अनिवाय्ये है । क्योंकि उसका बेयक्तिक तथा अपना सामाजिक जीवन जिन-जिन बातों को सत्‌ अथवा असत्‌ श्रेय अथवा प्रेय, गेय अथवा हय मानता है उन्हीं बातों कारतदलुरूप दिग्दृद्शंन वह अपनी रचनाओं में स्वभावतः करता है । समाज की धारणा पर मनुष्य की आचार- विवेकिनी बुद्धि केन्द्रित रहती है । अतणव साहित्य में अद्धित सदा- चार का चित्र उस काल विशेष के समाज का यथावत्‌ प्रतिविस्ब माना जाता है और उसी माप से उसका उत्कषौपकषे ओँका जाता ६.




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