उसकी कहानी | Uski Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि इस प्रकार प्रभावित करने बाला स्वर प्रयुक्त करने के बा- -चजूद बह व्योति से द्रत न रख सकता था । अन्यथा उसके गाल 'पर चुटकी लेना, उसके बालों में अंगुलियां फेरना और इन सब से बढ़कर जाती बार डसे चित्रों की एक बड़ी पुस्तक देना और इसके पहले प्रष्ठ पर अपने नाम के साथ ज्योति का नाम लिखना -क्या यह सब बातें व्यर्थ थी उस 'समय यद्यपि इन बातों का मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं था 'परन्तु आज जब में इन बातों को उसके चरित्र के प्रकाश में 'देखता हूँ तो अनुभव करता हूं कि यही वह विशेषताएं हैं जिन प्र उसके चरित्र का निमोण हुआ | पेशावर आकर हमें सब से पहले इस बात का पता लगा कि जिस बदले में सुरेन्द्र के पिता जी ने रहने का विचार किया था बद्‌ एक बडे वङ्गे का आधा भाग था। शोष आधे में एक सरदार साहिब जो कभी तहसीलदार थे और अब केबल धनवान थे; रहते थे / यह बंगला वास्तव में उन्हीं का था । और खू'कि उनकी आवश्यकता से बहुत अधिक था इसलिए उन्होंने इसका आधा भाग किशये पर दे देना उचित सममझा। सुरेन्द्र के पिता इनके पहले किराये दाश थे | कुछ दिन तो ऐसे ही साभान आदि ठीक करने में लग गए। फिर जब यह हुमा हुमी कुछ कम हुई तो हमने तहसीलदार साहिब के बंगले की जांच पड़ताल शुरू की । हमने देखा कि इनके और हमारे मकान में कोई अन्तर है तो एक आमोफोन का। उन दिलों प्रामोफोन हिन्दुस्तान में नए २ आए थे। अब तो गल्ली २ में स्थान २ पर रेडियो चहक रहे हैं परन्तु उन दिनों में तो आमोफोन भी किसीं किसी घर में ही मित्रता था। इन तहसीलदार साहिब के पास शक आकंषक आमोफोन था जिसे प्रायः उनकी थुवा पुत्री सुर- जीत कौर बजाया करती थी । सुश्जीत एक बहुत ही प्यारी १४ ক




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