कर्म - क्षेत्र | Karm Chhetra

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ओमीलाल - Omilal

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धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद बर्तन उठाकर जाने लगी तो उसने झाँखों ही झाँखों में प्राण को समभा दिया कि अरब वहू असली बात शुरू कर दे । राधा के पिता जी की शक्ल श्र खुली तबियत देखकर प्राण का उत्साह बढ़ गया था । उसने सोचा कि इस विषय पर बात- चीत करना कुछ कठिन नहीं होगा । परन्तु जब वह कहने को तैयार हुमा तो फिर बात मुँह से निकल नहीं पाई । वह सोचता ही रह गया कि बात का आरम्भ कैसे हो । उधर राधा लौट झ्ाई थी परन्तु अबकी वहू कमरे में नहीं श्राई, बल्कि दरवाजे के पास पद के पीछे खड़ी होकर वह उसे इशारे करने ' लगी । उधर से राधा का दबाव पड़ रहा था श्रौर इधर प्रारणा की बौख- लाहट बढ़ रही थी । जो बात कुछ समय पहले बिल्कुल सरल मानुम हो रही थी श्रब खासी कठिन दिखाई देने लगी । दर न-जाने यह हालत कब तक रहती, परन्तु भगवान भला करे पिता जी का, उन्होंने खुद ही कुछ ऐपी बात छेड़ दी जिससे प्रारा का काम अ्रासान हो गया । पिता जी बोले--बेटा, श्रब किस लाइन में जाने का इरादा है ? किसी कम्पीटीशन में बैठोगे या भ्रभी से कोई काम शुरू कर दोगे *'” मेरे विचार में कोई श्रौर काम करना हो तो शादी भी कर ही ख्याल में शादी इसी उम्र में हो जाय तो श्रच्छा है क्योंकि जब श्रादमी उम्र का हो जाता है तो उस समय तक बच्चे पढ़ लिख जाते श्रौर बड़े होकर किसी काम योग्य भी हो जाते हैं ”*****'वरना, बच्चे बुढ़ापे में जवान होते हैं तो बड़ी कठिनाई होती है ।' राधा के पिता जी ने बात तो बड़े पते की कही थी जो कोई तजुर्बे- कार शझ्रादमी ही कह सकता था, परन्तु इसके साथ ही प्राण ने सोचा कि श्रपनी बात चलाने का भी यह श्रच्छा मौका है। चुनाँचे वह बोला _ श्रापने ठीक ही कहा””'मेरा ख्याल यही है कि मैं जो कुछ भी करू” मेरा मतलब है कि मेरे माता-पिता भी कहते हैं कि मैं शादी भ्रभी कर लू ।' ं कगार रो




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