वनौषधि चन्द्रोदय भाग 10 | Banoshadhi Chandrodaya Vol. - X

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Banoshadhi Chandrodaya Vol. - X by श्री चन्द्रराज भण्डारी 'विशारद ' - Shri Chandraraj Bhandari 'Visharad'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ररे४४ दसवाँ भाग जाता है । निस्सन्देह इस बनुस्पति में आक्षेप निवारक और कफ निस्सारक धर्म बहुत प्रभावशाली रूप में रहते हैं । मैंने इस वनस्पति को बर्चों के जुकाम और तीन्र श्रोह्नाइटीज में बहुत उपयोगी पाया | सागवान सस्झत--शाक क्रकचेंपन्र श्रष्टकाष्ट शाकतय इत्यादि | हिन्दी--सागवान सेगोन सांगी | बज्ञला--सेसुन । मरोठी सागवान साग ।. शुजराती--शाग । पजाब--सागुन सागवान । तामील--सागम तेक्कु | तेलयू--टेकु । उ्दू--सायुन । फारठी-साज । 6817 । लेटिन- ७०008 टिक्टोना ग्रैण्डिस | वर्णन--सागवान के शक्ष भारतवर्ष के प्रघान २ पहार्टों में सब जगह होते हैं। इसकी इमारती लकड़ी सारी दुनिया में प्रसिद्ध है । इसके दक्ष बहुत ऊँचे और एकदम सीधे होते हैं । इसके पत्ते बहुत बढ़े २ करीब डेढ फुट लम्बे और इतने दी चौडे होते हैं । इसकी लकड़ी की दरारों में एक प्रकार का सफेद क्षार जम जाता है वदद चूने की जगह खाने के काम में आता है | गुण दोष और प्रभाव-- आयुर्वेदिक मतत_से सागवान कसैला शीतल रक्तपित्त नाशक गर्भ को स्थिर करनेवाला तथा वात- पित्त बवासीर कोढ़ और अतिसार को दूर करनेवाल्ा होता है । इसके फूल कड़वे कसैले विद रूखे इलके वात को छुपित करनेवाले तथा कफ पित्त और प्रमेह को दूर करनेवाले होते हैं | इसकी छाल मधुर रूखी कसैठी और कफनाशक होती है । इसकी जड़ मूत्र की कमी और मूत्र की सकावट को दूर करने के लिए दी जाती है । इसकी लकड़ी कैली शीतल मृदुविरेचक गर्भवती के गर्भाशय के लिए उपशामक तथा पित्त विकार बवासीर घवलरोग और अतिसार में लाभदायक होती है । यूनानीं मत--यूनानी मत से इसकी छकडी खराब स्वादवाली और खराब गन्घवाली होती है । यह मस्तकदयूल पित्तविकार और यकृत के निचले भाग में देनेवाले जलनयुक्त शूल को दूर करती है । प्यास को बुझाती है कमियां को नष्ट करती है कफ निस्सारक होती है । इसकी राख सूजी हुई भाँख की पर्ठकों पर लेप करने के काम में ली जाती है । इसके फूलों से निकाला हुआ तेढ बालों को बढाता है और खुजली में लाभ पहुँचाता है । डाक्टर देसाई के मत से सागवान के फूल और बीज मूत्रल होते हैं इसके बीजों का तेल केशवद्धक और खुजलीनाशक दोता है इसके पत्ते पित्तत्ामक रक्तश्नावरोधक और छोटी रक्तवाहिनियों का सकोचन करनेवालें होते हैं । इसकी छाल पित्तशञामक कुछ स्तम्भक और सूजन तथा छकृमियों को. नष्ट करने- वाढी होती है ।




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