विचार और निष्कर्ष | Vichar Aur Nishkarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आचीन भारत फो साहित्यिक ইল ७
ए06 4708. मे पूवं जौर परिचम के साहित्य की तुलना करते हए ठीक ही लिखा
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67760 ” साहित्य में रस और अछकार को भ्रमुखता मिलने के कारण भारत का
साहित्य आदर्शवान् रहा है, जीवन कं प्रति भौतिकं सजगता होने के कारण पदिचम
का साहित्य आज भी यथार्थवादी बना हुआ है। हमारा साहित्य भानव-कल्याण,
देश-कल्याण, समाज-कल्याण तथा आत्म-कल्याण की भोर -सदैव प्रवृत्त रहा है।
खेद है कि हमारे सुखद और गौरवपूर्ण अतीत ने साहित्य की जो दीघे परम्परा
चलाई थी वह् प्रसाद, पत, महादेवी, निरा, रवीन्द्र, सुष्रहयन् भारती आदि कतंमान
अमर कवियो तक पहुँचकर विनष्ट होती जा री है । इतिहास साक्षी है कि प्राचीन
मारत ने कमी भी, किसी युग में, किसी भी अन्य देश के साहित्य का अनुकरण नही
किया । फिर आज क्यो ? क्या इससे यह व्यजित नहीं होता कि हमारे आज के
साहित्यकारों मे अब कालिदास, वाल्मीकि, भवभूति-जैसे विदवजनीन कवियों की
सुृजनात्मक कल्पना-शक्ति नही रही या वह किसी कोने में मुंह छिपाकर, हमारी
सक्रीर्ण दृष्टि पर, बिलख रही है ! हमे उसके आँसू पोछने होगे । जब দাহ, হাদন-
हावर, मैक्समूलर, इमसंन, टाल्स्टाय, विटमैन-जैसे विदेशी साहित्यकार और विद्वान,
जो हमारे देश में कभी नही आये, हमारे देश के भमहान् साहित्य और सस्कृति की
अदासा करते नही थकते, तो हम भारतीयों का तो यह कतेंव्य ही है कि हम अपने
सुखद और स्वर्िम अतीत के अमूल्य हीरे, भोती और जवाहरातो को सेंभालकर
रखें ।
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