कर्मवाद और जन्मान्तर | Karmavad Aur Janmantar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कमैवाद कीं युक्ति ७
जव कि वे नास्तिक नहीं है तव देश्वर को अवश्य ही करुणामय
शरीर सर्वशक्तिमान् मानते है । इस प्रकार मान लेने से इस
वैषम्य समस्या का समाधान करना उनके पक्त मे अत्यंत कठिन
हा जाता है; क्योकि इस बात का वे कोई उत्तर नहीं दे सकते
कि करुणामय ईश्वर ने सर्वशक्तिमान् होकर भो जगत् में इतनी
विषमता क्ये पौला रखी ₹ै ।
पश्चिमी देशों में इसका फल्न बड़ा विषमय हुआ है; क्योंकि
विषमता का कोई श्रच्छा निर्णय न होने से यूरोप की बुद्धि
विपथगामिनी हो गई है। वहाँ किसी किसी विद्वान ने ईश्वर
का संपर्क इसलिये छोड़ दिया है कि उन्होंने ईश्वर के। कठोर,
निर्मम शरीर जीव को दुःख मे उदासीन समभ किया है। वे
कहते हैं कि एक ईश्वर है ते सही किंतु उसने संसार को बना
करके इसकी कायावली के संबंध में पूरी पूरी उपेक्ता ग्रहण कर
ली है और जीव के दुःख, क्लेश, यातना आदि में सहानुभूति
न दिखाकर वह खर्ग में एकांत में बैठा हुआ निष्ठुर हँसी हँस
रहा है। भला आस्तिकता का इससे बढ़कर शेचनीय परि-
णाम और क्या हा सकता है? दूसरी ओर जड़वादो
नास्तिको से यदच्छावाद ( 0118008 ) की अवतारणा करके इस
विषमता की जड़ का पता लगाया है। उनकी राय यह है
कि परमाणुओं के आकस्मिक संघात से इस विचित्रे विश्व फी
उत्पत्ति(हुई है। जीव असल में देह के सिवा और कोई चैतन्य-
वस्तु नहीं है। मस्तिष्क के कार्य-कल्ाप का प्रत्यक्ष फल
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