जैन साहित्य में श्रीकृष्ण चरित | Jain Sahitya Mein Shrikrishna Charit

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Jain Sahitya Mein Shrikrishna Charit by राजेंद्र मुनि - Rajendra Muniविनायसागर - Vinaysagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(৮) प्रस्तुत शोघ प्रबन्ध का अन्तिम वोवा अध्याय है, तुलनात्मक निष्कर्ष, तथ्य एव उपसंहार | प्रारम्भ के आठ अध्यायों भे तो सुनिश्री ने श्रीकृष्ण विषयक जैन परम्परा के उपलब्ध साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया है, किन्तु इस अन्तिम अध्याय में आपने अपने अध्ययन का तिचोड़ प्रस्तुत किया है जो इस छोघ प्रवन्ध का महत्वपूर्ण भाग है। इस अध्याय का एक महत्त्वपुर्ण भाग वैदिक परम्परा और जैन परस्परा में श्रीकृष्ण कया का तूलनात्मक विवेचन भी है। तुलवात्मक अध्ययन से अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओ का समाधान तो होता ही है, अन्तर का भी ज्ञान हो जाता है, साथ ही मान्यता भेद भी स्पष्ट हो जाता है । इस पुस्तक के पूर्व मुनिश्दी की और भी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो धुकी हैं, जिनमें उनकी विद्वत्ता स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है। उसी कडी में यह হী प्रबन्ध मुनिश्री को एक गम्भीर अध्येता के रूप मे प्रस्तुत करता है। में कामना करती हू कि मुनिश्वी की लेखनी निरन्तर प्रवहमान रहे ओर. वे इसी प्रकार उच्च कौटि के भ्रन्थ- रत्त मा भारती के भण्डार की अभिवृद्धि के लिए प्रस्तुत-करते रहें । उज्ज्वल भविष्य की कामतातमों के साथ । जैन - साध्दी. डॉ०- विव्यप्रभा হ্লও হ্‌০। पी-एच० डी०




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