दिवोदास | Divodasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सात परियों का ध्वंस | ও
कोई सीमा नहीं होती थी, यद्यपि पुरुपुरी में सख्त दिदायत थी कि पान
में अतिरेक से काम न लिया जाये । पुरुकुत्स पान की होड़ में किसी
से पीछे नहीं रहने वाला था, पर उसमें स्वामाविक संयम था। कमी
उसे सोम द्वारा भी बुद्धि खोये नहीं देखा गया। आधी रात
होने में कुछ देर थी, जबकि वह अपने सात मित्रों के साथ किसी
गम्मीर मंत्रणा में लगा हुआ था। एक मन््त्री ने कह्ा--
किलात यहाँ से एक योजन से अधिक दूर नहीं हैं | उनके पास
हजारों पशु हैं | नरम ऊन वाली मोटी-मोटी मेड़ों से सात जंगल मर
गया ।
- लेकिन, त्रमी तो किलातों के पहाड़ से नीचे उतरने का ठीक
समय नहीं है।
--ठीक समय न हो, पर शरद् का आरम्म हो गया है, इसलिए
हिस के भय के मारे उन्हें ऊपरी पर्बतों को छोड़ना दी पढ़ता है।
तीसरे प्रौढ़ ने कद्दा--अबके साल सर्दी जल्दी श्रायी दै इस ताल
वर्षा भी बहुत और लगातार चार मद्दीनों तक होती रही | कहते हैं,
जव हमारे यहाँ वर्षा होती. दै, तब ऊपर के पाको पर हिम पड़ जाती
है शायद इस कारण किलातों ने नीचे आने में जल्दी की हो |
प्रथम पुरुष ने और बातों का पता देते हुए कहा-- किलात
अमी अपने पुर (मोचाबन्दी) को सुब्यवस्थित नहीं कर सके हैं ।
घुरुकुत्स ने कहा--पर उनके आदमी तो सभी आ चुके हैं । लेकिन
कोई बात नदीं । हमे इन देवदरेषिवो ऋष्ण॒त्वचों की गायों और अजा-
अजवियों की आवश्यकता है । इन्द्र की आज्ञा है कि देव-द्ेषी के पास
धन नहीं होना चाहिए. | हम कई साल से सोच रहे हैं, लेकिन देव-
ताओं के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा नहीं कर सके। . *
तीसरे मंत्री ने मंत्रणा दी--अमभी तक हम पशणियोंओऔर वनचरों
(निषादो) को द्वी अपना शत्रु बनाये हुए थे | पव॑तीय किलात दूसरी ही
तरह के हैं। यह बड़े दुर्दान्त और युद्ध करने में निपुण हैं। शरीर में
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