शान्तिपर्व उत्तरार्ध | Shanti Parv Uttradh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नि न. तिन, | अध्याय `] ॐ मोत्तथमपवे-मापाटीका-सहित % ( ८०५) $ कृतानि ঘানি कर्माणि देवतेम्ननिभिस्तथा । नाचरे्ानि धमात्मा । श्रुत्वा चापि न कत्सयेत्‌ ॥१७) संचिन्त्य मनसा राजन्विदित्वा । शव्यमासनः। करोतिःयः शुभं कर्म स बै भद्राणि पश्यति १८ नवे कपाले सलिलं संन्यस्तं हीते यथा-। नवेतरे तथामार्व 1 प्रामोति सुखभावितम्‌ ॥ १६ | सतोयेऽन्यत्तु यचोयं तसमिन्नेव | पसिच्यंते | द्धे द्धिमवाभोति सलिले सलिलं यथा ॥ २० ॥ | एवं फमांणि यानीह बुद्धिगुक्तानि पार्थिव । समानि चैव यानीह | तानि पुण्यतमान्यपि ॥ २१ ¶॥` रात्रा जेतव्याः श॒त्रवधोन्नताश | से किये पाप पुणयकाफल सूच्म और जानकर कियेहुएका स्थुल होता है ॥१६॥|देवताओंने तथा झुनियोंने जो २ कर्म फिये हैं,तिस | कर्मके अनुसार धर्मात्मा सर्प. आचरण न करे, तथा . उनके | कर्म सुनकर उनकी चिदां भ न करे (कितु उनके उपदेशके असु- | सार कार्य करे )॥१७॥हे राजन्‌ ! जो मनुष्य असुक कमे मुकंसे $ होसकेंगा ( अथवा-नहीं ) यह समर कर कमे करता है उसको | शुभफल ही प्राप्त होता है। १८/|कच्चे घड़ेमें यदि पानी भर दिया | जाय तो उसमेंसे जल निर्केश जाता है और अन्त উত্তর ইজ | भी जल नहीं रहता है, परन्तु यंदि पक्के घड़ेमें जल भरा नाता | रै, तो बह वैसा दी भरा रहती है ॥१६॥ इस ही प्रकोर किसी | भकारका सारासार बिचारे षिना केवल चुंद्धि से प्रेरित 'होकर नो | कम किया जाता है, वह शुभ फंल नहीं देता है और जो कम '& पूर्णविचार फेरके कियामाता है उसकी उत्तम कर्म- कहते हैं और ' चह झुखदांयफ होता है।२०।जिंसमें जल होता है उंसे घड़में और जल भरनेसे उसके जलेमें जेंसे हद्धि होजाती है, ऐसे ही. जो कर्म पूर्णसीतिते विचार करे किया जाता है तो बह कर्म दूसरों | को उचित प्रतीत हो अथवा: अद्भुदिच/ तो भी वह करने | पुणयकों पंद्ाता' है॥| २१ | राजा अपनेसे बिक शंबुओंको ক কি




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