देशउन्नति का द्वार | Deshunnati Ka Dwar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोपाललाल खन्ना - Gopal Lal Khanna
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
है। सुमाते हिये में उपजेहें जब जानिहों कि--“नागरीमचार
देश उस्रति को द्वार है! ॥१६॥
जीवन को सार सुभ नागरीग्रचार एक, यासों न अधिक
और देश-उपकार हे । मात्भाषा--सेवा मात्भूमि की परम
पूजा दूजा जप तप प्रेम नेम ना हमार हे ॥ आओ यश लीजे
मिलि कौजे 'कमलाकरजू! या यार हमही को पूरो अधिकार
है । केवल न काहे किन्तु करिके दिखाय देहु 'नागरीमचार
देश उन्नति को द्वार है! ॥२०॥
भाव-भरी, सुन्दर, सोहाबनी, सरस, सपी,-ऐसी और
भाषा न दिखाईदेत यार ! हे । कौनहू बिषय की न न्युनता
निहारियव, ब्यवहार जोग परिपूरन भैंडार है ॥ चाहे ज्याहि
भाषाकों कठिन ते कठिन शब्द लिखि पढ़े लीजे शुद्धू,-पूरो
अधिकार है । निपट बार तोन, समभि सके न नोन-
“नागरी-प्रचार देशउन्नति को द्वार हे” ॥२ १॥
विज्ञ मृहफट भट्ट बालकृष्ण माननाौय, जिनको विचार
मति उन्नत, उदार हे । धन्य २ जननी जनफ उनके हैं, जिन
नायो सुत ऐसो गन, गौरव अगार है || प्रकट “प्रदीप” को
प्रकाशकारे नागरी की साहइस-सहित सेवा करते सदा रहे ।
सब फो छुकावत बुकाय बार २ बीर--“नागरी मचार देश
उम्नति को द्वार हे” ॥२२॥
यार | কলেজ है तुम्दार तुम हिंदी की सशय करो,
साय दित्त, बिच अमुसार है। औौर २ खोलो पुस्तकालय रुथ-
तंत्र, जहों सबही को सदा आवागमन बनारहै || नये उपयोगी
ग्रंय हिंदीके लपाय-दाम सुलभ लगाय, करो उनको पचार है |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...