देशउन्नति का द्वार | Deshunnati Ka Dwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) है। सुमाते हिये में उपजेहें जब जानिहों कि--“नागरीमचार देश उस्रति को द्वार है! ॥१६॥ जीवन को सार सुभ नागरीग्रचार एक, यासों न अधिक और देश-उपकार हे । मात्भाषा--सेवा मात्भूमि की परम पूजा दूजा जप तप प्रेम नेम ना हमार हे ॥ आओ यश लीजे मिलि कौजे 'कमलाकरजू! या यार हमही को पूरो अधिकार है । केवल न काहे किन्तु करिके दिखाय देहु 'नागरीमचार देश उन्नति को द्वार है! ॥२०॥ भाव-भरी, सुन्दर, सोहाबनी, सरस, सपी,-ऐसी और भाषा न दिखाईदेत यार ! हे । कौनहू बिषय की न न्युनता निहारियव, ब्यवहार जोग परिपूरन भैंडार है ॥ चाहे ज्याहि भाषाकों कठिन ते कठिन शब्द लिखि पढ़े लीजे शुद्धू,-पूरो अधिकार है । निपट बार तोन, समभि सके न नोन- “नागरी-प्रचार देशउन्नति को द्वार हे” ॥२ १॥ विज्ञ मृहफट भट्ट बालकृष्ण माननाौय, जिनको विचार मति उन्नत, उदार हे । धन्य २ जननी जनफ उनके हैं, जिन नायो सुत ऐसो गन, गौरव अगार है || प्रकट “प्रदीप” को प्रकाशकारे नागरी की साहइस-सहित सेवा करते सदा रहे । सब फो छुकावत बुकाय बार २ बीर--“नागरी मचार देश उम्नति को द्वार हे” ॥२२॥ यार | কলেজ है तुम्दार तुम हिंदी की सशय करो, साय दित्त, बिच अमुसार है। औौर २ खोलो पुस्तकालय रुथ- तंत्र, जहों सबही को सदा आवागमन बनारहै || नये उपयोगी ग्रंय हिंदीके लपाय-दाम सुलभ लगाय, करो उनको पचार है |




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