भक्तिसूत्र | Bhaktisutra

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नारद - Narad

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पण्डित रामस्वरुप शर्मा - Pandit Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दार्ध-मीजीध-सहित । (१५) मम्तते हैं, वह ॒नित्यधामके नित्यप्िद्ध भगवत्पारिषदाको सम्पत्ति निपर भी श्रीमगवान से अलुग्रहसे देवनदी गगांक प्रवाहका समान पारमे आकर शोर शद्ध जीवानि छवयाव करे साय एकाकार हा- कर उनकी स्वाभाविक्न वृत्ति के रूपम वहुरही हैं | कहा भी है, क ' दरवानां गुफलिङ्धानामाचश्राविक्क्मंणाम्‌ । सत्त एवंक्रमन््तो त्ति: स्वाभाविक्नी तु या॥ सनिमित्ता भागवती माक्तः पिद्धगरायपरां | यत्या या कोप निगीश[मनत्ता यथा ॥” जयषात प्रकृतिक तीनों गग जिनकी उपाध हु आर वरएराणादम जत्तक वमा चरन বি হি छ उन ताना दंचताआम आधप्ठानक्क द्वारा सतल्मुयुका उपकार करनाल श्रावेष्णु भावानूम भनन्याचत्तत एरुपक्षा'जा লালা দক্ষ चन्ति होती भयात्‌ यतुक्रुत्तताद्िदधय एकप्रक्रारक्ता ज्ञान- होताहे उक्ता दही नाम भगवती मक्ति हे । वह दवरूपर्णाक्त कीं वृत्ति होनेपर भी विषयपतोन्दरयक्ते कारस्‌. विना यल्‌ पत युभमक्त कं स्वमाव्‌ प्ताथ एकाकार होकर प्रकाशित होन पर हो उप्तका जाविशाक्त শিস की ध्ञआमभावित्त वात्ति कहत हूं, किसी फल्नज्ञो अमित्तापा কি বদি 4 न नहीं रहती, वह मोच्तपयन्त सब प्रकारक्षी परिद्धियास बडी है, नस पक्नी नठराग्नि पेटम पहुंच हुए सकत्त पराथोक्रो पचाकर जीरो करदती है तंत्त ही वह वात्त जीवक्ने अन्नमगयादें कत्ल फोषोको = © स शीघ्र ह्‌[ जाया करदतं ह | भगवता माक्त ভয়াবহ হু 23) 8 प धि 11 4 ष री न्ष ৮1 8 না




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