पच्च प्रतिक्रमण | Pacch Pratikraman
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
530
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ ३ 1 '. ।
उ०-निश्चय-दृष्टि से जीव अतीन्द्रिय हैं इसलिये उन का
लक्तण अतीन्द्रिय होना ही चाहिए, क्यों कि लन्तण
लक्ष्य से भिन्न नहीं हाता | जब लक्ष्य अथात् जीव
इन्द्रियो से नदी जाने जा सकते, तव उन का लक्षण
. इन्द्रियो से न जाना जा सके, यह स्वाभाविक ही है ।
(8)प्र --जीव तो आँख आदि इन्द्रियों से जाने जा सकते
हैँ | मनुष्य, पशु, पक्षी कीड़े आदि जीवों को
देख कर व छू कर हम जान सकते हं कि यहं कोई
जीवधारी है । तथा किसी की आक्ृति आंदे देख ,
कर या भापा सुन कर हम यह भी जान सकते हूं
कि युक जीव सुखी, दुःखी, मूढ, विद्वान, प्रसन्न
या नाराज हैं । फिर जीव अतीन्द्रिय केसे १
. उ०-शुद्ध रूप अर्थात् स्वभाव की अपेक्षा से जीव
अतीन्द्रिय है | अशुद्ध रूप अथोत् विभाव की
अपेक्षा से वह इन्द्रियगोचर भी है । अमृत्तेत्व---
रूप, रस आदि का अभाव या चेतनाशाक्ते, यह
जीव का स्वभाव है, ओर भाषा, आकृति, छख,
दुःख, राग, हेंष आदि जीव के विभाव अथोत्
कभेजन्य पद्चाय हैं । स्वभाव पुदगल-निरपक्ष होने
के कारण अतीन्द्रिय है ओर विभाव, पुदगल-सापेक्ष
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