पच्च प्रतिक्रमण | Pacch Pratikraman

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Pacch Pratikraman by पण्डित सुखलालजी - Pandit Sukhlalji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ३ 1 '. । उ०-निश्चय-दृष्टि से जीव अतीन्द्रिय हैं इसलिये उन का लक्तण अतीन्द्रिय होना ही चाहिए, क्यों कि लन्तण लक्ष्य से भिन्न नहीं हाता | जब लक्ष्य अथात्‌ जीव इन्द्रियो से नदी जाने जा सकते, तव उन का लक्षण . इन्द्रियो से न जाना जा सके, यह स्वाभाविक ही है । (8)प्र --जीव तो आँख आदि इन्द्रियों से जाने जा सकते हैँ | मनुष्य, पशु, पक्षी कीड़े आदि जीवों को देख कर व छू कर हम जान सकते हं कि यहं कोई जीवधारी है । तथा किसी की आक्ृति आंदे देख , कर या भापा सुन कर हम यह भी जान सकते हूं कि युक जीव सुखी, दुःखी, मूढ, विद्वान, प्रसन्न या नाराज हैं । फिर जीव अतीन्द्रिय केसे १ . उ०-शुद्ध रूप अर्थात्‌ स्वभाव की अपेक्षा से जीव अतीन्द्रिय है | अशुद्ध रूप अथोत्‌ विभाव की अपेक्षा से वह इन्द्रियगोचर भी है । अमृत्तेत्व--- रूप, रस आदि का अभाव या चेतनाशाक्ते, यह जीव का स्वभाव है, ओर भाषा, आकृति, छख, दुःख, राग, हेंष आदि जीव के विभाव अथोत्‌ कभेजन्य पद्चाय हैं । स्वभाव पुदगल-निरपक्ष होने के कारण अतीन्द्रिय है ओर विभाव, पुदगल-सापेक्ष




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