संस्थाएँ | Sansthayein

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महान भक्ति कवि पं दौलत राम का जन्म तत्कालीन जयपुर राज्य के वासवा शहर में हुआ था। कासलीवाल गोत्र के वे खंडेलवाल जैन थे। उनका जन्म का नाम बेगराज था। उनके पिता आनंदराम जयपुर के शासक की एक वरिष्ठ सेवा में थे और उनके निर्देशों के तहत जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उन्होंने 1735 में समाप्त कर दिया था जबकि पं। दौलत राम 43 वर्ष के थे। अपने पिता के बाद, उनके बड़े भाई निर्भय राम महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उनके दूसरे भाई बख्तावर लाई का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।

पंडितजी के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के स्थान के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। दौलत राम। चूंकि उनके प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६) रस्ये नहौँ किसी तरहकी चिन्ताएँ-बुराइया-कुंप्गति और दुनियादा- रोंके विषयमोग दिखाई नहीं देते हैं | यदि स्नेह ओर प्यारके कारण अपने बच्चोंकी किसी दूरके गुरुकुहमें न भेन सकें तो अपने ग्राम या नगरसे कुछ दूरपर जंगहमें ऐसे गुरुकुल वनवानेकी कोशिश करें । यत्न करनेपर कोई काम मुशकिल नहीं है । थोड़ीसी कोशिशमें सहन ही रछु वन सक्ता हे निपतके चलानेकी विधि परिले ही वता चुके हैं। सज्जनो ! पुराने समयमें इतने अधिक गुरुकुठ नहीं थर.नितने कि इस देशमें इस समय विद्यालय ओर पाठशालाएँ हैं | तो भी प्राचीन उन्नतिका मुकाविछा अबकी नाममात्रकी उन्नति कभी नहीं कर सक्ती | और करना भी नहीं चाहिये क्योंकि बहुत अधिक धन खर्च करनेपर भी और बहुत श्रम करनेपर भी एक दो दूठी फूटी भाषाएँ और पशु पक्षियोंके वृतान्त जानकर ही हमारी शिक्षाका अंत हो जाता है। भाइयो ! इन सब विचारोंको पढ़कर आप मुझे मूख, महामूख, देशद्रोही और सत्यानाशी ही ठहराये बिना नहीं रहेंगे । परन्तु यदि आप अपने चित्तको स्थिर करके एकान्त स्थानमें बैठकर इन वातोंपर विचार करोंगे तव आप जान सकोगे कि मेरे ये सव विचार क तक पत्य ह । अगर कहो कि इन पाटशाला ओर विद्याल्योंको उधार लेना चाहिये तो अन्वढ तो इनका सुधरना ही अप्त- কমন है, दूरे जो महुष्य इनको ही उन्ततिका श्रेष्ठ उपाय समझ रहे हैं ओर गुणोंका घर मान रहे हैं, और जो इन्हें हानिकारक नहीं किन्तु छाम- दायक ही समक्षे इवे हँ वे रोग भा इनको कयो ভজন करते लो । नो सूर्ख मनुष्य कि अपनेको सवते बुद्धिमान एम रहा ह वह॒ भला জিনা नृनेकी वरयो फो रिशा करने ठगा । वात यह है ओ होना है वही होकर रहेगा इसलिये जो छुछ है उस्तीको छामदायक जानकर हमें इन पाठशाढ्ाओं और विद्याल्योंडी ही सहायता करनी चाहिये | क्योंकि ये संस्थाएँ भी विद्याका प्रचार कर रही है । जौर ऐसे बच्चोंको जो गुरुकुहोंमें नाकर नहीं पढ़ सक्ते, लोकिक और पारलौकिक विद




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